वशीकरण कर्म अनुसार सबसे महत्वपूर्ण स्थान "जल" का है, जैसा की आप सब जानते है कि जल ही जीवन है, बिना जल के कोई भी मनुष्य, जीव जंतु और सभी वनस्पति भी जल पर आधारित है.
बिना जल के जीवन का अस्तित्व ही नही है तथा बिना जल के हमारा कर्म काण्ड, पूजा पाठ सभी अधूरा है,
गोस्वामी तुलसी दास जी ने भी श्री राम चरित मानस में स्पष्ट लिखा है की मनुष्य का शरीर भी जल तत्व या जल से बना हुआ है, “क्षिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम शरीरा।।” पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और पवन – इन पंचतत्वों से यह अत्यंत अधम शरीर रचा गया है.अतः स्पष्ट है की जल ही वो महत्वपूर्ण तत्व है जो कि सभी मनुष्यों में जीवन दायनी का धर्म निभाता है,“यथा पिण्डे तथा ब्रह्माण्डे”
इसी जल के द्वारा हम वशीकरण आदि सभी क्रिया करने में सक्षम भी हो जाते है.
और यही जल जब प्रत्यक्ष रूप से जीवन की संजीवनी के रूप में कार्य कर रहा है, तो षट कर्मों, महाविद्या
उपासना, आदि सभी तंत्र के क्षेत्रों में जल की महत्वपूर्ण भूमिका है,
यही जल गुप्त रूप से सभी क्रियाओं में अत्यंत लाभ देने में सक्षम है. आज इसी जल के द्वारा हम किस प्रकार से वाशिकर्ण कर सकते है, इस विषय पर प्रकाश डालने का प्रयास कर रहा हूँ.
जीवन का आरम्भ प्रातः से होता है और उस प्रातः का आरम्भ जल से होता है.जल के बिना जीवन की सभी क्रिया किसी भी दुसरे तत्व या वस्तु से नही हो सकती.कभी सोचा है.
भारतीय संस्कृति में जब भी कोई अतिथि आयें तो घर की लक्ष्मी अर्थात बहन, बेटी आदि के द्वारा सर्वप्रथम जल दिया जाता था, इस समय भी बहुत कम परिवारों में ऐसा होता है, अधिकतर आजकल तो घर का नौकर ही जल लेकर सामने आता दिखाई देता है,....................आगे पड़ने के लिए क्लिक करें.
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