Friday, May 20, 2016

तिलक द्वारा भाग्य वृद्धि करें.....



भारतीय संस्कृति में तिलक का महतवपूर्ण स्थान है, बिना तिलक के कोई भी कार्य शुरू नही होता. बिना तिलक के रस्मों रिवाज भी नही होते है, अतः तिलक का महत्व इतना ज्यादा है कि इसके बिना विवाह आदि मंगल कार्य भी सफल नही होतें है..

तिलक से ही धर्म की पहचान होती है, कोई भी नया कार्य श्री गणेश जी की पूजा तथा तिलक के बिना संभव नही है, क्योंकि तिलक में एक ऐसी शक्ति कहो या ऊर्जा हैं जिसके द्वारा ब्रह्माण्ड स्थित सभी ग्रह वशीभूत रहते है तथा उसी ऊर्जा से सभी नर नारी भी वशीभूत होती है, वशीकरण कर्म में भी तिलक का बहुत योगदान रहता है इसके विषय में अलग से चर्चा करूंगा,

तिलक से मन और दिमाग का भी सम्बन्ध बना रहता है क्यों कि तिलक लगाने से मन शान्ति अनुभव करता है, तिलक लगाने से शरीर में एक विशेष ऊर्जा बस जाती है जिसके द्वारा दिन भर आलस्य दूर हो कर मन उत्साहित रहता है. अतः तिलक भारतवर्ष में एक अनुष्ठान की तरह प्रयोग किया जाता है.ये आज से नहीं, बल्कि प्राचीन काल से हमारे पूज्य ऋषि मुनियों ने तिलक के अत्यंत महत्वपूर्ण प्रयोगों को हम सब के समक्ष रखा है.
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तिलक से भाग्य भी बदला जाता है.क्योंकि भाग्य वृद्धि करने वाले ग्रह ही है और तिलक उन अशुभ ग्रहों के फलों को शुभ बनाने में सहायक है,
तिलक के विषय में महत्वपूर्ण जानकारी लिख रहा हूँ इसे अपना कर आप यदि नियमित रूप से तिलक करते है तो आप जैसा भाग्यशाली और कौन होगा अर्थात आपका भाग्य उदय होकर आपको सुख समृद्धि प्रदान करेगा, श्रद्धा और विश्वास द्वारा किया गया तिलक आपके सुख के लिए एक अच्छा सरल साधन बन सकता है.


सबसे पहले तिलक अपने इष्टदेव, गुरुदेव और फिर अपने पितृ के चित्र पर लगाना चाहियें. इनके बाद अपने मस्तक पर विधि अनुसार तिलक करें जिसका वर्णन अब करने वाला हूँ.


प्रतिदिन स्नान आदि से निवृत होकर तिलक लगाना चाहिए, कभी भूल कर भी बिना स्नान किये तिलक नही लगाना चाहिए, ऐसा अशुभ होता है.

आप अनामिका उंगली से देवताओं को तिलक करें तथा मनुष्यों को अनामिका तथा अंगूठे के योग से तिलक करना चहिये,

तिलक लगाने के बाद नींद नही लेनी चाहिए अर्थात कम से कम तीन घंटे तक नही सोना चाहियें,
चन्दन का तिलक लगाने से एकाग्रता बढती है, विद्यार्थी चन्दन का तिलक लगा कर शिक्षा के क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकते है.

कुंकुम और चावल का तिलक लगाने से आकर्षण बढ़ता है. और आलस्य भी समाप्त कर देता है.
केसर का तिलक प्रसिद्धि और यश को बढाता है, इसके द्वारा जो काम रुके हुए है वो भी जल्दी पूरे होने लगते है.

गोरोचन का तिलक लगाने से मुकद्दमें आदि तथा शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है.
अष्टगंध का तिलक बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है, इसके द्वारा सभी प्रकार का ज्ञान तथा भेद मिलता है और सभी कार्य बिना बाधा के पूरे होते है.

सूर्य: आप अनामिका के साथ लाल चंदन का तिलक कर सकते हैं.

चांद: आप छोटी उंगली के साथ सफेद चंदन का तिलक कर सकते हैं.

मंगल ग्रह: आप अनामिका के साथ नारंगी सिंदूर का तिलक कर सकते हैं.

बुध: आप अनामिका के साथ अष्टगंध Asthgandha तिलक कर सकते हैं.

बृहस्पति: आप तर्जनी के साथ केसर का तिलक कर सकते हैं.

शुक्र: आप अनामिका के साथ चावल और अक्षत का तिलक कर सकते हैं.

शनि, राहु-केतु: आप तीन उंगलियों के साथ भस्म  या अगरबत्ती की भस्म या विभूति का तिलक कर सकते हैं..

आकर्षण के लिए:-

एक ताम्बें का बर्तन लेकर उसमें थोड़े से अखंडित चावल डाल कर उसमें थोड़ा गुलाब जल मिला कर पीस कर पेस्ट की तरह बना लें, तत्पश्चात उस पेस्ट का तिलक भगवान श्री कृष्णः जी को करें तदुपरांत स्वयं  करें इससे आप में आकर्षण शक्ति की वृद्धि होने लगेगी ऐसा प्रतिदिन नियमित करें तो जल्दी फल मिलेगा.इस तिलक करने वालों को मांसाहारी नही होना चाहिए, तथा मदिरा का सेवन भी नही करना चाहिए.

विजय प्राप्त करने लिए :-

लाल चन्दन लेकर उसे किसी पत्थर पर घिस कर किसी चांदी की कटोरी में रख कर माँ दुर्गा देवी के सामने रखें तथा ॐ दुं दुर्गाये नमः मंत्र का 27 बार जाप श्रद्धा से करें, जाप के बाद यदि आप पुरुष हो तो ये चन्दन माँ दुर्गा के चरणों में लगाये यदि महिला हो तो माँ दुर्गा के माथे में लगायें, माँ दुर्गा को तिलक लगाने के बाद अपने माथे पर तथा सिर में चोटी के स्थान पर और अपने दोनों कन्धों पर लगाने से प्रत्येक क्षेत्र में विजय प्राप्त होती है, ऐसा लगातार करें..


 शुभमस्तु !!

बजरंग बाण की शक्ति से शत्रु परास्त करें..........

सिद्ध बजरंग बाण


भौतिक मनोकामनाओं की पुर्ति के लिये बजरंग बाण का अमोघ विलक्षण प्रयोग......... 
अपने इष्ट कार्य की सिद्धि के लिए मंगल अथवा शनिवार का दिन चुन लें। हनुमानजी का एक चित्र या मूर्ति जप करते समय सामने रख लें। ऊनी अथवा कुशासन बैठने के लिए प्रयोग करें। अनुष्ठान के लिये शुद्ध स्थान तथा शान्त वातावरण आवश्यक है। घर में यदि यह सुलभ न हो तो कहीं एकान्त स्थान अथवा एकान्त में स्थित हनुमानजी के मन्दिर में प्रयोग करें।


हनुमान जी के अनुष्ठान मे अथवा पूजा आदि में दीपदान का विशेष महत्त्व होता है। पाँच अनाजों (गेहूँ, चावल, मूँग, उड़द और काले तिल) को अनुष्ठान से पूर्व एक-एक मुट्ठी प्रमाण में लेकर शुद्ध गंगाजल में भिगो दें। 


अनुष्ठान वाले दिन इन अनाजों को पीसकर उनका दीया बनाएँ। बत्ती के लिए अपनी लम्बाई के बराबर कलावे का एक तार लें अथवा एक कच्चे सूत को लम्बाई के बराबर काटकर लाल रंग में रंग लें। इस धागे को पाँच बार मोड़ लें। इस प्रकार के धागे की बत्ती को सुगन्धित तिल के तेल में डालकर प्रयोग करें। समस्त पूजा काल में यह दिया जलता रहना चाहिए। हनुमानजी के लिये गूगुल की धूनी की भी व्यवस्था रखें।


जप के प्रारम्भ में यह संकल्प अवश्य लें कि आपका कार्य जब भी होगा, हनुमानजी के निमित्त नियमित कुछ भी करते रहेंगे। अब शुद्ध उच्चारण से हनुमान जी की छवि पर ध्यान केन्द्रित करके बजरंग बाण का जाप प्रारम्भ करें। “श्रीराम–” से लेकर “–सिद्ध करैं हनुमान” तक एक बैठक में ही इसकी एक माला जप करनी है।




गूगुल की सुगन्धि देकर जिस घर में बगरंग बाण का नियमित पाठ होता है, वहाँ दुर्भाग्य, दारिद्रय, भूत-प्रेत का प्रकोप और असाध्य शारीरिक कष्ट आ ही नहीं पाते। समयाभाव में जो व्यक्ति नित्य पाठ करने में असमर्थ हो, उन्हें कम से कम प्रत्येक मंगलवार को यह जप अवश्य करना चाहिए।

बजरंग बाण ध्यान.......


श्रीरामअतुलित बलधामं हेमशैलाभदेहं।
दनुज वन कृशानुं, ज्ञानिनामग्रगण्यम्।।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं।
रघुपति प्रियभक्तं वातजातं नमामि।।

दोहा
निश्चय प्रेम प्रतीति ते, विनय करैं सनमान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान।।

चौपाई
जय हनुमन्त सन्त हितकारी। सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी।।
जन के काज विलम्ब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै।।
जैसे कूदि सिन्धु वहि पारा। सुरसा बदन पैठि विस्तारा।।
आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुर लोका।।
जाय विभीषण को सुख दीन्हा। सीता निरखि परम पद लीन्हा।।
बाग उजारि सिन्धु मंह बोरा। अति आतुर यम कातर तोरा।।
अक्षय कुमार को मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा।।
लाह समान लंक जरि गई। जै जै धुनि सुर पुर में भई।।
अब विलंब केहि कारण स्वामी। कृपा करहु प्रभु अन्तर्यामी।।
जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता। आतुर होई दुख करहु निपाता।।
जै गिरधर जै जै सुख सागर। सुर समूह समरथ भट नागर।।
ॐ हनु-हनु-हनु हनुमंत हठीले। वैरहिं मारू बज्र सम कीलै।।
गदा बज्र तै बैरिहीं मारौ। महाराज निज दास उबारों।।
सुनि हंकार हुंकार दै धावो। बज्र गदा हनि विलम्ब न लावो।।
ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुँ हुँ हुँ हनु अरि उर शीसा।।
सत्य होहु हरि सत्य पाय कै। राम दुत धरू मारू धाई कै।।
जै हनुमन्त अनन्त अगाधा। दुःख पावत जन केहि अपराधा।।
पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत है दास तुम्हारा।।
वन उपवन जल-थल गृह माहीं। तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं।।
पाँय परौं कर जोरि मनावौं। अपने काज लागि गुण गावौं।।
जै अंजनी कुमार बलवन्ता। शंकर स्वयं वीर हनुमंता।।
बदन कराल दनुज कुल घालक। भूत पिशाच प्रेत उर शालक।।
भूत प्रेत पिशाच निशाचर। अग्नि बैताल वीर मारी मर।।
इन्हहिं मारू, तोंहि शमथ रामकी। राखु नाथ मर्याद नाम की।।
जनक सुता पति दास कहाओ। ताकी शपथ विलम्ब न लाओ।।
जय जय जय ध्वनि होत अकाशा। सुमिरत होत सुसह दुःख नाशा।।
उठु-उठु चल तोहि राम दुहाई। पाँय परौं कर जोरि मनाई।।
ॐ चं चं चं चं चपल चलन्ता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनु हनुमंता।।
ॐ हं हं हांक देत कपि चंचल। ॐ सं सं सहमि पराने खल दल।।
अपने जन को कस न उबारौ। सुमिरत होत आनन्द हमारौ।।
ताते विनती करौं पुकारी। हरहु सकल दुःख विपति हमारी।।
ऐसौ बल प्रभाव प्रभु तोरा। कस न हरहु दुःख संकट मोरा।।
हे बजरंग, बाण सम धावौ। मेटि सकल दुःख दरस दिखावौ।।
हे कपिराज काज कब ऐहौ। अवसर चूकि अन्त पछतैहौ।।
जन की लाज जात ऐहि बारा। धावहु हे कपि पवन कुमारा।।
जयति जयति जै जै हनुमाना। जयति जयति गुण ज्ञान निधाना।।
जयति जयति जै जै कपिराई। जयति जयति जै जै सुखदाई।।
जयति जयति जै राम पियारे। जयति जयति जै सिया दुलारे।।
जयति जयति मुद मंगलदाता। जयति जयति त्रिभुवन विख्याता।।
ऐहि प्रकार गावत गुण शेषा। पावत पार नहीं लवलेषा।।
राम रूप सर्वत्र समाना। देखत रहत सदा हर्षाना।।
विधि शारदा सहित दिनराती। गावत कपि के गुन बहु भाँति।।
तुम सम नहीं जगत बलवाना। करि विचार देखउं विधि नाना।।
यह जिय जानि शरण तब आई। ताते विनय करौं चित लाई।।
सुनि कपि आरत वचन हमारे। मेटहु सकल दुःख भ्रम भारे।।
एहि प्रकार विनती कपि केरी। जो जन करै लहै सुख ढेरी।।
याके पढ़त वीर हनुमाना। धावत बाण तुल्य बनवाना।।
मेटत आए दुःख क्षण माहिं। दै दर्शन रघुपति ढिग जाहीं।।
पाठ करै बजरंग बाण की। हनुमत रक्षा करै प्राण की।।
डीठ, मूठ, टोनादिक नासै। परकृत यंत्र मंत्र नहीं त्रासे।।
भैरवादि सुर करै मिताई। आयुस मानि करै सेवकाई।।
प्रण कर पाठ करें मन लाई। अल्प-मृत्यु ग्रह दोष नसाई।।
आवृत ग्यारह प्रतिदिन जापै। ताकी छाँह काल नहिं चापै।।
दै गूगुल की धूप हमेशा। करै पाठ तन मिटै कलेषा।।
यह बजरंग बाण जेहि मारे। ताहि कहौ फिर कौन उबारे।।
शत्रु समूह मिटै सब आपै। देखत ताहि सुरासुर काँपै।।
तेज प्रताप बुद्धि अधिकाई। रहै सदा कपिराज सहाई।।
दोहा
प्रेम प्रतीतिहिं कपि भजै। सदा धरैं उर ध्यान।।
तेहि के कारज तुरत ही, सिद्ध करैं हनुमान।।




जय श्री राम 

श्री राम चरित मानस द्वारा सुखी जीवन बनाएं......

गोस्वामी श्री तुलसी दास जी ने सभी प्राणियों के सुख के लिए श्री राम चरित मानस की रचना की उसमें प्रत्येक चौपाई, दोहा, सोरठा और छंद आदि सभी मंत्रो का सिद्ध रूप ही है. इसका अनुष्ठान कर लाभ प्राप्त किया जा सकता  है.


मानस के दोहे-चौपाईयों को सिद्ध करने का विधान यह है कि किसी भी शुभ दिन की रात्रि को दस बजे के बाद अष्टांग हवन के द्वारा मन्त्र सिद्ध करना चाहिये। फिर जिस कार्य के लिये मन्त्र-जप की आवश्यकता हो, उसके लिये नित्य जप करना चाहिये। 

वाराणसी में भगवान् शंकरजी ने मानस की चौपाइयों को मन्त्र-शक्ति प्रदान की है- इसलिये वाराणसी की ओर मुख करके शंकरजी को साक्षी बनाकर श्रद्धा से जप करना चाहिये।

अष्टांग हवन सामग्री
१॰ चन्दन का बुरादा, २॰ तिल, ३॰ शुद्ध घी, ४॰ चीनी, ५॰ अगर, ६॰ तगर, ७॰ कपूर, ८॰ शुद्ध केसर, ९॰ नागरमोथा, १०॰ पञ्चमेवा, ११॰ जौ और १२॰ चावल।

जानने की बातें-

जिस उद्देश्य के लिये जो चौपाई, दोहा या सोरठा जप करना बताया गया है, उसको सिद्ध करने के लिये एक दिन हवन की सामग्री से उसके द्वारा (चौपाई, दोहा या सोरठा) १०८ बार हवन करना चाहिये। यह हवन केवल एक दिन करना है। मामूली शुद्ध मिट्टी की वेदी बनाकर उस पर अग्नि रखकर उसमें आहुति दे देनी चाहिये। प्रत्येक आहुति में चौपाई आदि के अन्त में ‘स्वाहा’ बोल देना चाहिये।

प्रत्येक आहुति लगभग पौन तोले की (सब चीजें मिलाकर) होनी चाहिये। इस हिसाब से १०८ आहुति के लिये एक सेर (८० तोला) सामग्री बना लेनी चाहिये। कोई चीज कम-ज्यादा हो तो कोई आपत्ति नहीं। पञ्चमेवा में पिश्ता, बादाम, किशमिश (द्राक्षा), अखरोट और काजू ले सकते हैं। इनमें से कोई चीज न मिले तो उसके बदले नौजा या मिश्री मिला सकते हैं। केसर शुद्ध ४ आने भर ही डालने से काम चल जायेगा।



हवन करते समय माला रखने की आवश्यकता १०८ की संख्या गिनने के लिये है। बैठने के लिये आसन ऊन का या कुश का होना चाहिये। सूती कपड़े का हो तो वह धोया हुआ पवित्र होना चाहिये।

मन्त्र सिद्ध करने के लिये यदि लंकाकाण्ड की चौपाई या दोहा हो तो उसे शनिवार को हवन करके करना चाहिये। दूसरे काण्डों के चौपाई-दोहे किसी भी दिन हवन करके सिद्ध किये जा सकते हैं।

सिद्ध की हुई रक्षा-रेखा की चौपाई एक बार बोलकर जहाँ बैठे हों, वहाँ अपने आसन के चारों ओर चौकोर रेखा जल या कोयले से खींच लेनी चाहिये। फिर उस चौपाई को भी ऊपर लिखे अनुसार १०८ आहुतियाँ देकर सिद्ध करना चाहिये। रक्षा-रेखा न भी खींची जाये तो भी आपत्ति नहीं है। दूसरे काम के लिये दूसरा मन्त्र सिद्ध करना हो तो उसके लिये अलग हवन करके करना होगा।

एक दिन हवन करने से वह मन्त्र सिद्ध हो गया। इसके बाद जब तक कार्य सफल न हो, तब तक उस मन्त्र (चौपाई, दोहा) आदि का प्रतिदिन कम-से-कम १०८ बार प्रातःकाल या रात्रि को, जब सुविधा हो, जप करते रहना चाहिये।

कोई दो-तीन कार्यों के लिये दो-तीन चौपाइयों का अनुष्ठान एक साथ करना चाहें तो कर सकते हैं। पर उन चौपाइयों को पहले अलग-अलग हवन करके सिद्ध कर लेना चाहिये।



१॰ विपत्ति-नाश के लिये
“राजिव नयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक।।”

२॰ संकट-नाश के लिये

“जौं प्रभु दीन दयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा।।
जपहिं नामु जन आरत भारी। मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी।।
दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ मम संकट भारी।।”

३॰ कठिन क्लेश नाश के लिये

“हरन कठिन कलि कलुष कलेसू। महामोह निसि दलन दिनेसू॥”

४॰ विघ्न शांति के लिये

“सकल विघ्न व्यापहिं नहिं तेही। राम सुकृपाँ बिलोकहिं जेही॥”


५॰ खेद नाश के लिये

“जब तें राम ब्याहि घर आए। नित नव मंगल मोद बधाए॥”


६॰ चिन्ता की समाप्ति के लिये

“जय रघुवंश बनज बन भानू। गहन दनुज कुल दहन कृशानू॥”


७॰ विविध रोगों तथा उपद्रवों की शान्ति के लिये

“दैहिक दैविक भौतिक तापा।राम राज काहूहिं नहि ब्यापा॥”


८॰ मस्तिष्क की पीड़ा दूर करने के लिये

“हनूमान अंगद रन गाजे। हाँक सुनत रजनीचर भाजे।।”


९॰ विष नाश के लिये

“नाम प्रभाउ जान सिव नीको। कालकूट फलु दीन्ह अमी को।।”


१०॰ अकाल मृत्यु निवारण के लिये

“नाम पाहरु दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट।
लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहि बाट।।”


११॰ सभी तरह की आपत्ति के विनाश के लिये / भूत भगाने के लिये

“प्रनवउँ पवन कुमार,खल बन पावक ग्यान घन।
जासु ह्रदयँ आगार, बसहिं राम सर चाप धर॥”


१२॰ नजर झाड़ने के लिये

“स्याम गौर सुंदर दोउ जोरी। निरखहिं छबि जननीं तृन तोरी।।”


१३॰ खोयी हुई वस्तु पुनः प्राप्त करने के लिए

“गई बहोर गरीब नेवाजू। सरल सबल साहिब रघुराजू।।”


१४॰ जीविका प्राप्ति केलिये

“बिस्व भरण पोषन कर जोई। ताकर नाम भरत जस होई।।”


१५॰ दरिद्रता मिटाने के लिये

“अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के। कामद धन दारिद दवारि के।।”


१६॰ लक्ष्मी प्राप्ति के लिये

“जिमि सरिता सागर महुँ जाही। जद्यपि ताहि कामना नाहीं।।
तिमि सुख संपति बिनहिं बोलाएँ। धरमसील पहिं जाहिं सुभाएँ।।”


१७॰ पुत्र प्राप्ति के लिये

“प्रेम मगन कौसल्या निसिदिन जात न जान।
सुत सनेह बस माता बालचरित कर गान।।’


१८॰ सम्पत्ति की प्राप्ति के लिये

“जे सकाम नर सुनहि जे गावहि।सुख संपत्ति नाना विधि पावहि।।”


१९॰ ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त करने के लिये

“साधक नाम जपहिं लय लाएँ। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएँ।।”


२०॰ सर्व-सुख-प्राप्ति के लिये

सुनहिं बिमुक्त बिरत अरु बिषई। लहहिं भगति गति संपति नई।।


२१॰ मनोरथ-सिद्धि के लिये

“भव भेषज रघुनाथ जसु सुनहिं जे नर अरु नारि।
तिन्ह कर सकल मनोरथ सिद्ध करहिं त्रिसिरारि।।”


२२॰ कुशल-क्षेम के लिये

“भुवन चारिदस भरा उछाहू। जनकसुता रघुबीर बिआहू।।”


२३॰ मुकदमा जीतने के लिये

“पवन तनय बल पवन समाना। बुधि बिबेक बिग्यान निधाना।।”


२४॰ शत्रु के सामने जाने के लिये

“कर सारंग साजि कटि भाथा। अरिदल दलन चले रघुनाथा॥”


२५॰ शत्रु को मित्र बनाने के लिये

“गरल सुधा रिपु करहिं मिताई। गोपद सिंधु अनल सितलाई।।”


२६॰ शत्रुतानाश के लिये

“बयरु न कर काहू सन कोई। राम प्रताप विषमता खोई॥”


२७॰ वार्तालाप में सफ़लता के लिये

“तेहि अवसर सुनि सिव धनु भंगा। आयउ भृगुकुल कमल पतंगा॥”


२८॰ विवाह के लिये

“तब जनक पाइ वशिष्ठ आयसु ब्याह साजि सँवारि कै।
मांडवी श्रुतकीरति उरमिला, कुँअरि लई हँकारि कै॥”


२९॰ यात्रा सफ़ल होने के लिये

“प्रबिसि नगर कीजै सब काजा। ह्रदयँ राखि कोसलपुर राजा॥”


३०॰ परीक्षा / शिक्षा की सफ़लता के लिये

“जेहि पर कृपा करहिं जनु जानी। कबि उर अजिर नचावहिं बानी॥
मोरि सुधारिहि सो सब भाँती। जासु कृपा नहिं कृपाँ अघाती॥”


३१॰ आकर्षण के लिये

“जेहि कें जेहि पर सत्य सनेहू। सो तेहि मिलइ न कछु संदेहू॥”


३२॰ स्नान से पुण्य-लाभ के लिये

“सुनि समुझहिं जन मुदित मन मज्जहिं अति अनुराग।
लहहिं चारि फल अछत तनु साधु समाज प्रयाग।।”


३३॰ निन्दा की निवृत्ति के लिये

“राम कृपाँ अवरेब सुधारी। बिबुध धारि भइ गुनद गोहारी।।


३४॰ विद्या प्राप्ति के लिये

गुरु गृहँ गए पढ़न रघुराई। अलप काल विद्या सब आई॥


३५॰ उत्सव होने के लिये

“सिय रघुबीर बिबाहु जे सप्रेम गावहिं सुनहिं।
तिन्ह कहुँ सदा उछाहु मंगलायतन राम जसु।।”


३६॰ यज्ञोपवीत धारण करके उसे सुरक्षित रखने के लिये

“जुगुति बेधि पुनि पोहिअहिं रामचरित बर ताग।
पहिरहिं सज्जन बिमल उर सोभा अति अनुराग।।”


३७॰ प्रेम बढाने के लिये

"सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती॥


३८॰ कातर की रक्षा के लिये

“मोरें हित हरि सम नहिं कोऊ। एहिं अवसर सहाय सोइ होऊ।।”


३९॰ भगवत्स्मरण करते हुए आराम से मरने के लिये

रामचरन दृढ प्रीति करि बालि कीन्ह तनु त्याग । 
सुमन माल जिमि कंठ तें गिरत न जानइ नाग ॥


४०॰ विचार शुद्ध करने के लिये

“ताके जुग पद कमल मनाउँ। जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ।।”


४१॰ संशय-निवृत्ति के लिये

“राम कथा सुंदर करतारी। संसय बिहग उड़ावनिहारी।।”


४२॰ ईश्वर से अपराध क्षमा कराने के लिये

"अनुचित बहुत कहेउँ अग्याता। छमहु छमा मंदिर दोउ भ्राता।।”


४३॰ विरक्ति के लिये

“भरत चरित करि नेमु तुलसी जे सादर सुनहिं।
सीय राम पद प्रेमु अवसि होइ भव रस बिरति।।”


४४॰ ज्ञान-प्राप्ति के लिये

“छिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम सरीरा।।”


४५॰ भक्ति की प्राप्ति के लिये

“भगत कल्पतरु प्रनत हित कृपासिंधु सुखधाम।
सोइ निज भगति मोहि प्रभु देहु दया करि राम।।”


४६॰ श्रीहनुमान् जी को प्रसन्न करने के लिये

“सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपनें बस करि राखे रामू।।”


४७॰ मोक्ष-प्राप्ति के लिये

“सत्यसंध छाँड़े सर लच्छा। काल सर्प जनु चले सपच्छा।।”


४८॰ श्री सीताराम के दर्शन के लिये

“नील सरोरुह नील मनि नील नीलधर श्याम । 
लाजहि तन सोभा निरखि कोटि कोटि सत काम ॥”


४९॰ श्रीजानकीजी के दर्शन के लिये

“जनकसुता जगजननि जानकी। अतिसय प्रिय करुनानिधान की।।”


५०॰ श्रीरामचन्द्रजी को वश में करने के लिये

“केहरि कटि पट पीतधर सुषमा सील निधान।
देखि भानुकुल भूषनहि बिसरा सखिन्ह अपान।।”


५१॰ सहज स्वरुप दर्शन के लिये

“भगत बछल प्रभु कृपा निधाना। बिस्वबास प्रगटे भगवाना।।”



(कल्याण  तथा गोस्वामी तुलसीदास कृत श्री राम चरित मानस से साभार उद्धृत)


जय श्री राम.....