ज्योतिष शास्त्र में मनुष्य के जीवन की समस्त घटनाओं को जानने के लिए हमारे ऋषि मुनियों ने तप और साधना कर जन्म कुंडली का साधन दिया उस जन्म कुंडली में नौ ग्रह, बारह राशियाँ तथा सत्ताईस नक्षत्रों का वर्णन किया इन सबके आपस में जो योग बनते है और दशाओं का ज्ञान से मनुष्य अपने भविष्य में शुभ अशुभ देखने की कौशिश करता है.
उसी अन्तरिक्ष विज्ञान के अनुसार हमारा अन्तरिक्ष 12 भागों में विभाजित कर प्रत्येक भाग को 30 डिग्री का मान कर उसमें नक्षतों का मान निश्चित किया तथा उन 12 भागों को अलग अलग नाम से प्रतिष्ठित किया गया,
आज हम सातवें भाग के बारें में चर्चा करेंगे जिसे "तुला राशि " नाम से जानते है.वैदिक ज्योतिष में प्रत्येक राशि का अलग अलग महत्व है, तुला राशि का विस्तार 180 से 210 अंश का होता है,इस राशि
का तत्व वायु है इसलिए इस राशि के व्यक्तियों की विचारशक्ति अच्छी होती है.
इस राशि
की गणना चर राशि में होती है अर्थात इस राशि के प्रभाव से व्यक्ति कुछ ना कुछ करने
में व्यस्त रहता है. इस राशि का स्वामी ग्रह शुक्र है जिसकी गणना नैसर्गिक शुभ
ग्रहों में होती है और यह एक सौम्य ग्रह होता है. तुला राशि का चिन्ह एक तराजू है
जो जीवन में संतुलन को दर्शाता है.
तुला लग्न का आपके
व्यक्तित्व पर क्या प्रभाव होता है आइए उसके बारे में जानें. इस लग्न के
प्रभावस्वरुप आप संतुलित व्यक्तित्व के व्यक्ति होते हैं और आप न्यायप्रिय व्यक्ति
भी होते हैं.
शुक्र को सुंदरत का
कारक ग्रह माना जाता है इसलिए शुक्र के प्रभाव से आप सौन्दर्य प्रिय व्यक्ति होते
हैं. सुंदर चीजों को एकत्रित करना आपका शौक हो सकता है. आपको नित नई फैशनेबल
वस्त्र पहनना पसंद हो सकता है.
शुक्र को भोग का कारक
भी माना जाता है. आपको विलासिता की वस्तुएँ खरीदना व उनके उपभोग करने में रुचि
होगी. वायु प्रधान होने से आपकी विचारशक्ति बहुत अच्छी होती है और नित नई योजनाएँ
बनाते हैं. तुला राशि को बनिक राशि भी कहा गया है इसलिए यदि तुला राशि आपके लग्न
में उदय होने से आप बहुत अच्छे व्यवसायी होते हैं. आप बिजनेस चलाने के लिए नई - नई
योजनाओं को बना सकते हैं.
आपको गीत,संगीत, नृत्य
व अन्य कलाओ में रुचि हो सकती है क्योकि शुक्र को कला का भी कारक माना गया है.
तुला राशि के स्वामी शुक्र होते हैं और बृहस्पति के साथ उन्हें भी गुरु का व
मंत्री का दर्जा दिया गया है. इसलिए आप सत्यवादी व अनुशासनप्रिय व्यक्ति होते हैं.
तुला लग्न के शुभ
ग्रहों की चर्चा करते हैं. इस लग्न का स्वामी शुक्र होता है इसलिए शुक्र लग्नेश
होकर इस लग्न लिए शुभ होता है. इस लग्न के लिए शनि केन्द्र व त्रिकोण के स्वामी
होकर अति शुभ होते हैं और इस लग्न के जातको के लिए योगकारी ग्रह बन जाते हैं.
बुध इस लग्न के लिए नवम
भाव के स्वामी होकर शुभ होते हैं. नवम भाव कुंडली का अति बली त्रिकोण होता है और
आपका भाग्य भी यही भाव निर्धारित करता है. तुला लग्न के लिए चंद्रमा दशम के स्वामी
होकर सम होते हैं. दशम भाव केन्द्र स्थान है और यहाँ के स्वामी तटस्थ हो जाते हैं.
तुला लग्न के लिए मंगल
प्रबल मारक ग्रह बन कर अति अशुभ हो जाता है. इस लग्न के लिए मंगल दूसरे व सातवें
भाव का स्वामी होता है और इन दोनो भावो की गणना मारक भाव के रुप में होती है.
तुला लग्न के लिए सूर्य
त्रिषडाय भाव के स्वामी होकर अशुभ होते हैं. भले ही यह लाभ दिलाते हों लेकिन एकादश
भाव की गणना अशुभ भाव में होती है. तुला लग्न के लिए तीसरे व छठे भाव के स्वामी
होकर बृहस्पति सबसे अशुभ बन जाते हैं. तीसरे और छठे की गणना त्रिक भावों के रुप
में होती है.
तुला लग्न के लिए
डायमंड, नीलम व पन्ना शुभ होते हैं. आप अगर महंगे रत्न नहीं
खरीद सकते हैं तब उपरत्न भी पहन सकते हैं. शुक्र के लिए डायमंड, शनि के लिए नीलम और बुध के लिए पन्ना पहनते हैं.
आपकी कुंडली में जिस
ग्रह की दशा चल रही हो उसके मंत्र जाप भी आपको नियमित रुप से 108 बार करना चाहिए. कुंडली में अशुभ ग्रह की दशा चल रही
हो तब मंत्र जाप के साथ दान व व्रत भी कर सकते हैं, इससे अशुभ फलों में कमी आ सकती है.
शुभमस्तु !!