Wednesday, August 27, 2014

राहु-काल का दैनिक उपयोग......



आज के समय प्रत्येक व्यक्ति की यही इच्छा रहती हैं कि उसके कार्य में कहीं कोई भी रूकावट न आये.इस हेतु वह प्रयास भी करता हैं, अपनी आस्था के अनुसार वह उपाय भी करता हैं. समय कि गति बहुत ही बलवान हैं, 
हम क्या शास्त्र भी कहते हैं कि समय को हमेशा याद करो. समय को केसें याद करें या समय का केसें सदुपयोग करें. आज ज्योतिष के आधार पर यह जानें कि किस समय समय शुभ हैं व किस समय समय की गति अशुभ चल रही हैं.
समय के दो पहलू हैं पहले प्रकार का समय व्यक्ति को ठीक समय पर काम करने के लिए कहता हैं. तो दूसरा समय उस काम को किस समय करना चाहिए इसका ज्ञान कराता हैं. समय हमारा मार्गदर्शक की तरह काम करता हैं.

ज्योतिष में राहू-काल के रूप में प्रतिष्ठित एक समय जिसकी जानकारी आज में यहाँ पर देने जा रहा हूँ. राहू-काल के समय कोई भी शुभ काम नहीं किया जाना चाहिए. अनुभव में आया हैं की इस समय कार्य करने से उसमें नाना प्रकार के व्यवधान उत्पन्न होते हैं. राहू-काल का प्रचलन दक्षिण भारत में अधिक हैं.

यह सप्ताह के सातों दिन निश्चित समय पर लगभग डेढ़ घंटा रहता हैं.इसे अशुभ समय के रूप में देखा जाता हैं.इसी कारण राहू-काल में शुभ कर्मो को यथा संभव टाल दिया जाता हैं.
राहू-काल दिन के आठवें भाग का नाम हैं. सामान्यतः दिन का आरम्भ प्रात: ६:०० बजे से शाम के ६:०० बजे तक माना गया हैं. १२ घंटो को बराबर ८ भागो में बांटा गया हैं.प्रत्येक भाग डेढ़ घंटे का होता हैं. जिसे ज्योतिष शास्त्र अनुसार राहू-काल कहते हैं. एक दम सही भाग निकालने के लिए स्थानीय सूर्य उदय व सूर्यास्त के समय की दूरी को आठ भागो में बाँट कर एक भाग राहू-काल का निश्चित होता हैं.

सप्ताह के प्रत्येक दिवस के अनुसार राहू-काल का समय सामान्यतः निम्न प्रकार से हैं. इसे हमेशा स्मरण रखें. कोई भी शुभ कार्य करने के लिए इस भाग को त्याग दें.

१-       सोमवार – प्रात: ०७:३० बजे से ०९:०० बजे तक.
२-      मंगलवार – दोपहर ०३:०० बजे से ०४:३० बजे तक.
३-      बुधवार – दोपहर १२:०० बजे से दोपहर ०१:३० तक.
४-     वृहस्पतिवार – दोपहर ०१:३० से दोपहर ०३:०० बजे तक.
५-    शुक्रवार – प्रात: १०:३० बजे से दोपहर १२:०० बजे तक.
६-    शनिवार – प्रात: ०९:०० बजे से प्रात: १०:३० बजे तक.
७-   रविवार – सांयकाल ०४:३० बजेसेसांयकाल ०६:०० बजे तक.

राहू-काल के समय किसी नए काम को शुरू नहीं किया जाता हैं. परन्तु जो काम इस समय से पहले शुरू हो चुका हैं उसे राहू-काल के समय बीच में नहीं छोड़ा जाता है, अशुभ कामों के लिये इस समय क विचार नहीं किया जाता है.


इति शुभम.....





Monday, August 25, 2014

वैवाहिक सुख में वास्तु व ज्योतिष की महत्वपूर्ण भूमिका....





वैवाहिक जीवन में परेशानीयां दक्षिण-पूर्व,उत्तर-पूर्व,दक्षिण-पश्चिम, दिशा में दोष होने के कारण आती हें. लेकिन थोडा-बहुत वास्तु के उपाय कर के हम अपना जीवन सुधार सकते हें.वैवाहिक जीवन में दक्षिण-पूर्व कोण सबसे ज्यादा असर दिखाता हें, यह कोण गर्म स्वभाव का होता हें तथा शुक्र ग्रह इस कोण पर अधिकार रखता हें फिर शुक्र ग्रह के शादी के कारक ग्रह होने से इस कोण का महत्त्व और भी बढ़ जाता हें.

१ – दक्षिण-पूर्व में गड्ढा होना, इस दोष के कारण अचानक घर के मालिक में अग्नि तत्व की कमी हो जाती हें.इसके दूरगामी परिणाम निकल सकते हें.घर की महिलायें ज्यादा घूमने फिरने लगती हें.इस कारण से घर में क्लेश होने लगता हें.वास्तु शास्त्र के अनुसार दक्षिण-पूर्व का कोण यदि दूषित हें तो घर के पुरुषों पर सबसे ज्यादा असर होता हें, खून सम्बन्धी रोग उत्पन्न होने लगते हें.

२ – दक्षिण-पूर्व के कोण में यदि बोरिंग हो तो अग्नि तत्व तथा जल तत्व का मेल होता हें जो कि परिवार में सदस्य आपस में ही झगड़ा करने लगते हें.घर में खर्च बढ़ जाना,एक दूसरे में दोष निकालना आदि. तथा नपुंसकता फैलती हें.

३ – दक्षिण-पूर्व कोण का बढ़ना ...इसका मतलब हें कि अग्नि का बढ़ना. इससे मुकदमे की नौबत आ सकती हें.लोगों को अपना तमाशा आप दिखा कर ही चैन आए.क्योंकि अग्नि जब भी जले सारे संसार को लपटें दिखा कर, गर्मी दे कर शान्ति होती हें.इस कोने का बढ़ना अपने आप में एक श्राप हें,बिना किसी बात के झगड़े,पति-पत्नी दोनों ही अशांत रहेंगे.उनके वैवाहिक जीवन को अस्त-व्यस्त कर देगा.यहां पर एक सवाल खड़ा होता है,

कि अगर अग्नि बढ़ गयी तो सिर्फ घर का मर्द ही पराई महिलाओं से मिलता हें,महिलायें क्यों नहीं ऐसा करती ?दरअसल इसका जवाब ज्योतिष शास्त्र में हें.

अगर महिला का शुक्र ग्रह अपनी राशि का यानि कि वृष या तुला का हें, या शुक्र मीन राशि का हो कर उच्च का हें तो यह दोष के दुष्परिणामसे बच जाते हें.या कई बार ऐसा होता हें कि यह दोष होने के बाद भी यह असर कभी-कभी आप पर ना आ कर बच्चों पर आता हें क्योकि आपका अच्छा शुक्र आपको तो बचा जाता हें लेकिन आगे आने वाली पीढी मै अगर शुक्र ठीक नहीं हें तो अग्नि से भला कौन बचा हें कभी ? फिर यह कहावत भी हें अगर आग के पास जाओगे तो जरूर जलोगे अगर अपने आपको बचा भी लिया,सेंक तो फिर भी खाओगें.यह कहावत यहां पर सिद्ध होती हें.

उपाय....

१ दक्षिण-पूर्व के गड्ढ़ों को भरकर उत्तर या उत्तर-पूर्व से ऊँचे कर ले तथा मारूति यंत्र कि स्थापना कर दें ..
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२ घर पर गाय (काले रंग की) पालें.या हर रोज काले रंग की गाय को दही-चीनी डाल कर आटे का पेड़ा  सुबह-शाम डाले..

३ अपने कपडें हमेशा साफ़ रखें.परफ्यूम लगा कर व इस्त्री कर के ही पहनें...

४ केतु ग्रह का कोई उपाय अवश्य करें. २ नींबू व दो केले बहते पानी में सोमवार व वृहस्पतिवार को अवश्य बहाए...

ज्योतिष विधान...

१२ वां घर व सातवां घर का मेल दिलाता है. दक्षिण-पूर्व एवं दक्षिण-पश्चिम कोण का ध्यान. १२वां घर बिस्तर के सुख आराम, खर्चा, बिमारी का व औरत से शारीरिक सुख का हें.कोई भी पापी ग्रह यहाँ बैठा हो या पापी ग्रह की नज़र हो तो इस घर को परेशान जरूर करेगी. आप न चाहते हुये भी अपने घर पर उस पापी ग्रह की चीजे रखनी शुरू कर दोगे जैसा कि अगर राहू १२वें घर पर हें या उसकी ७वीं, तीसरी, ११वीं नज़र १२वें घर पर हें तो आप इस कोने में बोरिंग, गड्ढे या जूतें रखना या पानी का रखनाशुरू कर दोगे.अगर आप १२वें घर के मांगलिक हें तो दक्षिण-पूर्व कोण बढ़ा कर लोगे.

उत्तर-पश्चिम कोण....

वैवाहिक जीवन में वायव्य या उत्तर-पश्चिम कोण का भी महत्त्व कुछ कम नहीं हें.यह कोण हवा का कोण हे तथा चन्द्र ग्रह इस कोण का स्वामी हें. चंद्रमा हमारे मन का कारक ग्रह हें. शादी, शुभ कार्य, मुहूर्त आदि कार्य चन्द्रमा का मिलान करके ही गुण,नाड़ी, दोष इत्यादि का पता करते हें. क्योंकि अगर चन्द्रमा दोनों वर व कन्या का आपस में मैत्री लिए होगा तभी वैवाहिक जीवन सुखमय संभव हैं.....  


शुभमस्तु!!