भारत वर्ष की परम्परा रही है की सौभाग्यवान महिला अपना श्रृंगार सबसे पहले करती है जिसे प्राचीन काल से हमारे ऋषि मुनियों ने शास्त्रों द्वारा निर्देश दिए है, चूड़िया या कंगन इसमें सबसे महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते है, क्योंकि चूडिया और कंगन ही महिला के साथ हमेशा रहते है दुसरे श्रृंगार तो समय समय पर या किसी उत्सव आदि में किये जाते है,
भारतीय ज्योतिष में भी इन्ही चूड़ियों और कंगन का वैवाहिक जीवन में अत्यधिक महत्व है.आज के युग में यदि हम समाज को देखते है तो लोग इसे प्राचीन सभ्यता कह कर चूड़ी आदि धारण नही करते है, इसी विशेष कारण से आज पारिवारिक कलह और तलाक की समस्याएं बढ़ रही है,
मेने स्वयं इसका पिछले कई वर्षों से अनुभव किया की तलाक के 76% केसों में चूड़ियाँ व कंगन का अभाव था, भारतीय परम्परा में सुहागिन स्त्री का श्रृंगार सबसे महत्वपूर्ण है जिसमें दैनिक श्रृंगार के रूप में चूडिया, कंगन और मांग का सिन्दूर अत्यधिक महत्वपूर्ण है इसके द्वारा ही वैवाहिक जीवन तो सुखी होता ही है, साथ ही संतान का सुख तथा संतान भी नियंत्रण में रहती है.
उदाहरण के लिए एक उपाय है जो की सिद्ध और टेस्टेड है की यदि बच्चा माता-पिता की आज्ञा का पालन नही करता अर्थात नियंत्रण में नही है और उसकी आयु 16 वर्ष से कम है तो माँ को अपनी मांग का सिन्दूर अनामिका उंगली से मंगलवार तथा शनिवार रात्री में लेकर बच्चो को तिलक रूप से लगाया जाये तो एक या दो महीने में ही बच्चा सुधरने लगता है. ऐसा सिर्फ मांग के सिन्दूर से ही संभव है यदि दुसरे श्रृंगार सामग्री का उपयोग किया जाए तो जीवन सुखी हो जाता है. अतः श्रृंगार का आधुनुक युग में भी अधिक महत्व तथा इसके द्वारा हम कई प्रकार की समस्याएं स्वतः ही दूर करने में सक्षम हो जाते है.
यदि सुहागिन महिला चूडिया, कंगन तथा मांग में सिदूर का प्रयोग दैनिक दिनयर्चा में करें तो 65% समस्या अपने आप ही दूर हो जाती है, नही तो आजमा कर देख लो.....
अब आपको चूड़ियाँ और कंगन के ज्योतिषीय महत्व को बताते है, चूड़ियाँ और कंगन का आकार गोल होने से ये चंद्रमा और बुध ग्रह को प्रभावित करते है, चूड़ियाँ और कंगन का सुन्दरता तथा वैवाहिक जीवन से सम्बन्ध है साथ ही चूड़ियाँ और कंगन हाथ की कलाई जिसे मणिबंध कहते है उसे छूते हुए पहनते है जिसका सम्बन्ध स्वास्थ्य से भी होता है.यदि चूड़ियाँ और कंगन को सही रंग निर्देशों अनुसार धारण किया जाए तो पारिवारिक कलह तो समाप्त होता ही है साथ ही महिला का स्वास्थ्य भी बिलकुल ठीक रहने लगता है, संतान उत्पत्ति में कभी सर्जरी नही होती है,
चूड़ियाँ और कंगन को कभी भी भूल कर मंगलवार और शनिवार को नही खरीदना चाहिए, यदि आप सुख समृद्धि चाहती है तो नयी चूड़ियाँ और कंगन को धारण करने से पूर्व माँ गौरी के आगे रख कर ही धारण करें .चूड़ियाँ और कंगन हमेशा सुबह पहने या शाम को सूर्यास्त के बाद जिस से अधिक लाभ होता है.ऐसा करने से पति का किसी दूसरी महिला से कोई भी किसी भी प्रकार का सम्बन्ध नही बनता तथा पति-पत्नी में प्रेम की वृद्धि होती है.
अविवाहित कन्या मिले जुले रंग की चूड़ियाँ और कंगन पहन सकती है, तथा सुहागिन को कभी भी काले तथा सफेद रंग का चूड़ियाँ और कंगन में प्रयोग नही करना चाहियें, तथा चूड़ियाँ और कंगन कांच, सोना और चांदी धातु के ही धारण से लाभ होता है, यदि आदमी भी कड़ा सोना चांदी ताम्बा या लोहे के धारण कर सकते है. महिला यदि सोना और चांदी को वजन का सम भाग लेकर कंगन गुलाबी रंग के पहने तो प्रेम बढ़ेगा तथा वैवाहिक जीवन हमेशा सुखमय रहेगा.
अविवाहित कन्या यदि जल्दी विवाह की इच्छा रखती है तो लाल रंग का कंगन और लाल रंग के कपड़े को माँ दुर्गा के आगे प्रार्थना कर धारण करें या किसी सुहागिन स्त्री को दान दें. तो जल्दी विवाह का योग बनता है.
संतान की इच्छुक महिला पीले रंग के कांच की चूड़ियाँ और कंगन धारण कर वृहस्पति देव का पूजन कर धारण करें या दान करें तो शीघ्र ही संतान की कामना पूर्ण हो जाती है.
चूड़ियाँ और कंगन को कभी भी मस्तक से स्पर्श नही करवाना चाहिए गलती से भी हाथ माथे में ना लगे इसके कारण विपरीत फल मिलता है....
शुभमस्तु !!
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