Saturday, April 30, 2016

मीन लग्न के शुभ अशुभ योग.........

ज्योतिष शास्त्र में मनुष्य के जीवन की समस्त घटनाओं को जानने  के लिए हमारे ऋषि मुनियों ने तप और साधना कर जन्म कुंडली का साधन दिया उस जन्म कुंडली में नौ ग्रह, बारह राशियाँ तथा सत्ताईस नक्षत्रों का वर्णन किया इन सबके आपस में जो योग बनते है और दशाओं का ज्ञान से मनुष्य अपने भविष्य में शुभ अशुभ देखने की कौशिश करता है.

उसी अन्तरिक्ष विज्ञान के अनुसार हमारा अन्तरिक्ष 12 भागों में विभाजित कर प्रत्येक भाग को 30 डिग्री का मान कर उसमें नक्षतों का मान निश्चित किया तथा उन 12 भागों को अलग अलग नाम से प्रतिष्ठित किया गया,

आज हम बारहवें भाग के बारें में चर्चा करेंगे जिसे "मीन  राशि " नाम से जानते है.मीन राशि भचक्र की अंतिम राशि है. वैदिक ज्योतिष में प्रत्येक राशि का अलग अलग महत्व है, मीन राशि का विस्तार 330 से 360 अंश का होता है,इस राशि का स्वामी ग्रह बृहस्पति है और इसे भचक्र की सबसे शुभ व पवित्र राशि माना गया है
.इस राशि का प्रतीक चिन्ह दो मछलियाँ हैं जो परस्पर एक्-दूसरे के विपरीत मुख कर के स्थित है. यह जलतत्व राशि है और स्वभाव से यह द्वि-स्वभाव मानी गई है. मीन राशि में बुध नीच का होता है तो शुक्र उच्च का हो जाता है.मीन लग्न होने से आपके व्यक्तित्व के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बाते बताने का प्रयास करते हैं. 
आपका लग्न मीन होने से आप धार्मिक प्रवृति के व्यक्ति होगें. आप संयमी, ज्ञानी, अन्तर्मुखी व कृतज्ञ व्यक्ति होते हैं. आपके अंदर सहनशक्ति होती है और आपके अंदर ज्ञान का भंडार होता है. आपका स्वभाव अन्तर्मुखी होने से आप कम ही बोलते हैं.
मीन लग्न जलतत्व होने से आप दूसरों से सरलता से प्रभावित हो जाते हैं. आप जीवन में सदा परिवर्तन की चाह रखते हैं क्योकि आपका लग्न द्वि-स्वभाव है इसलिए आप शीघ्र ही एक चीज से ऊब जाते हैं. अधिकांश समय आपके अंदर आत्मविश्वास की कमी होती है.
मीन लग्न के लिए शुभ ग्रहों की बात करते हैं. इस लग्न के लिए सबसे अधिक शुभ मंगल व चंद्रमा होते हैं. मंगल धनेश व भाग्येश होते हैं और चंद्रमा पंचम भाव के स्वामी होकर शुभ होते हैं. बृहस्पति लग्नेश है लेकिन मीन लग्न के लिए यह केन्द्राधिपति दोष से पीड़ित होता है इसलिए ज्यादा शुभ फल नही दे पाता. जन्म कुंडली में बृहस्पति यदि अत्यधिक बली अवस्था में स्थित है तब शुभ फल दे सकता है.
मीन लग्न के लिए कौन से ग्रह अशुभ हो सकते हैं आइए उनके बारे में चर्चा करें. इस लग्न के लिए सूर्य षष्ठेश होकर अशुभ माना गया है. बुध चतुर्थेश व सप्तमेश होकर ज्यादा शुभ नहीं है. इसे केन्द्राधिपति होने का दोष लगता है. शनि एकादशेश व द्वादशेश होकर शुभ नहीं हैं. मीन लग्न के लिए शुक्र बिलकुल अशुभ होता है. यह तीसरे व अष्टम भाव के स्वामी होते हैं.
अंत में हम आपको शुभ रत्नों के बारे में जानकारी देना चाहेगें. मीन लग्न के लिए बृहस्पति लग्नेश होता है इसलिए इसका पुखराज धारण करना शुभ होता है. मंगल ग्रह के लिए मूंगा पहन सकते हैं. मंगल नवम भाव अर्थात भाग्य भाव के स्वामी होते हैं.
चंद्रमा आपकी कुंडली में पंचम भाव के स्वामी होते हैं तो आप इसके लिए मोती पहन सकते हैं. जन्म कुंडली में जब शुभ ग्रह कमजोर हों तभी आप उनका रत्न पहनें अन्यथा नहीं. जन्म कुंडली में यदि अशुभ ग्रह की दशा चल रही हो तब मंत्र जाप नियमित रुप से करना चाहिए. इससे अशुभ फलों में कमी आती है.
शुभमस्तु!!

Friday, April 29, 2016

कुम्भ लग्न में शुभ अशुभ योग............

ज्योतिष शास्त्र में मनुष्य के जीवन की समस्त घटनाओं को जानने  के लिए हमारे ऋषि मुनियों ने तप और साधना कर जन्म कुंडली का साधन दिया उस जन्म कुंडली में नौ ग्रह, बारह राशियाँ तथा सत्ताईस नक्षत्रों का वर्णन किया इन सबके आपस में जो योग बनते है और दशाओं का ज्ञान से मनुष्य अपने भविष्य में शुभ अशुभ देखने की कौशिश करता है.

उसी अन्तरिक्ष विज्ञान के अनुसार हमारा अन्तरिक्ष 12 भागों में विभाजित कर प्रत्येक भाग को 30 डिग्री का मान कर उसमें नक्षतों का मान निश्चित किया तथा उन 12 भागों को अलग अलग नाम से प्रतिष्ठित किया गया,

आज हम ग्यारहवें भाग के बारें में चर्चा करेंगे जिसे "कुम्भ राशि " नाम से जानते है.वैदिक ज्योतिष में प्रत्येक राशि का अलग अलग महत्व है, कुम्भ राशि का विस्तार 300 से 330 अंश का होता है,

इस राशि का स्वामी ग्रह शनि है. इस राशि की गणना वायु तत्व राशि में होती है. स्वभाव से इस राशि को स्थिर राशि में रखा गया है. इस राशि का प्रतीक चिन्ह एक व्यक्ति है जिसके कंधे पर घड़ा है. व्यक्ति ने नीचे धोती पहनी हुई है और ऊपर कुछ नही है. घड़े मे से पानी छलक व्यक्ति के ऊपर भी गिर रहा है.




अब कुंभ लग्न के बारे में बात करते है, आपका व्यक्तित्व आकर्षक होता है और लोग आपकी ओर आकर्षित हो ही जाते हैं. आप जीवन में एक बार जो सिद्धांत बना लेते हैं फिर उन्हें बदलना कठिन ही होता है. आप सिद्धांतों पर चलने वाले व्यक्ति होते हैं.


आप अपने जीवनसाथी के प्रति निष्ठावान रहते हैं और पूर्ण रुप से उसके प्रति समर्पित रहते हैं. आपको समझना अन्य लोगो के लिए कठिन काम होता है क्योकि कुंभ का अर्थ घड़ा होता है, जब तक उसके भीतर तक ना झांका जाए तब तक पता ही नहीं चलता है कि कितना खाली है और कितना भरा हुआ है. इसलिए जो लोग आपके बेहद ही करीब होते हैं वही समझ सकते हैं.
कुंभ लग्न स्थिर लग्न होता है इसलिए आपके जीवन में भी स्थिरता बनी रहती है और आप अपने स्थायी निशान सभी जगह छोड़ते जाते हैं. आप हवा की तरह स्वतंत्र विचार वाले होते हैं, आप बहुत सी इच्छाओ को मन में पालकर रखते हैं. मानवतावादी विचारो वाले तथा मानव कल्याण चाहने वाले होते हैं. आप एक ईमानदार व्यक्ति भी होते हैं.
आपका लग्न वायु तत्व होने से आप सोचते बहुत हैं और गंभीर चिंतन में डूबे रहते हैं. स्वभाव से कुछ शर्मीले भी होते हैं और अपनी बातों को आसानी से किसी से बांटते भी नही हैं.
अब आपको कुंभ लग्न के लिए शुभ ग्रहो के बारे में बताने का प्रयास करते हैं. इस लग्न के शनि लग्नेश होकर शुभ होता है. यदि शनि आपकी कुंडली में लग्नेश होकर कमजोर है तब आप नीलम धारण कर सकते है.
यदि आपको नीलम महंगा लगता है तब आप इसकी जगह नीली या लाजवर्त भी पहन सकते हैं. आपके लिए पन्ना व डायमंड भी उपयोगी रत्न है. पन्ना बुध के लिए और शुक्र के लिए डायमंड पहन सकते हैं. आप डायमंड की जगह इसका कोई भी उपरत्न ओपल या जर्कन भी पहन सकते हैं.
अब आपको कुंभ लग्न के लिए शुभ ग्रहों के बारे में जानकारी देने का प्रयास करते हैं. कुंभ लग्न का स्वामी ग्रह शनि लग्नेश होकर शुभ होता है.
बुध पंचमेश होने से शुभ होता है हालांकि इसकी दूसरी राशि अष्टम भाव में पड़ती है. इसलिए बुध यदि कुंडली में निर्बल है तब शायद शुभ देने में असमर्थ हो सकता है और यदि बुध शुभ स्थिति में है तब यह पंचम भाव से संबंधित शुभ फल प्रदान करेगा.
शुक्र चतुर्थेश व नवमेश होकर योगकारी ग्रह बन जाते हैं. चतुर्थ भाव केन्द्र तो नवम भाव बली त्रिकोण भाव होता है और केन्द्र्/त्रिकोण का संबंध बनने पर ग्रह शुभ हो जाता है.
अंत में कुंभ लग्न के लिए अशुभ ग्रहों की बात करते हैं. कुंभ लग्न के लिए बृहस्पति शुभ नहीं माने जाते हैं. बृहस्पति मारक भाव तथा त्रिषडाय भाव के स्वामी होते हैं. कुंभ लग्न में कर्क राशि छठे भाव में पड़ती है और चंद्रमा इसके स्वामी होते हैं इसलिए चंद्रमा षष्ठेश होकर अशुभ हो जाते हैं.
इस लग्न के लिए सूर्य मारक भाव अर्थात सप्तम भाव के स्वामी बनते हैं हालांकि मारक का दोष लगता नहीं है. इस लग्न के लिए मंगल तीसरे व दशम भाव के स्वामी होते हैं. मंगल की गिनती भी शुभ ग्रहों में नहीं होती है.
शुभमस्तु !!

मकर लग्न में शुभ अशुभ योग विचार.....

ज्योतिष शास्त्र में मनुष्य के जीवन की समस्त घटनाओं को जानने  के लिए हमारे ऋषि मुनियों ने तप और साधना कर जन्म कुंडली का साधन दिया उस जन्म कुंडली में नौ ग्रह, बारह राशियाँ तथा सत्ताईस नक्षत्रों का वर्णन किया इन सबके आपस में जो योग बनते है और दशाओं का ज्ञान से मनुष्य अपने भविष्य में शुभ अशुभ देखने की कौशिश करता है.

उसी अन्तरिक्ष विज्ञान के अनुसार हमारा अन्तरिक्ष 12 भागों में विभाजित कर प्रत्येक भाग को 30 डिग्री का मान कर उसमें नक्षतों का मान निश्चित किया तथा उन 12 भागों को अलग अलग नाम से प्रतिष्ठित किया गया,

आज हम दशम भाग के बारें में चर्चा करेंगे जिसे "मकर राशि " नाम से जानते है.वैदिक ज्योतिष में प्रत्येक राशि का अलग अलग महत्व है, मकर राशि का विस्तार 270 से 300 अंश का होता है,मकर राशि का स्वामी ग्रह शनि महाराज है. मकर राशि में मंगल उच्च और गुरु नीच का होता है.


इस राशि को चर राशि की श्रेणी में रखा गया है. इस कारण इस राशि के लग्न में आने के प्रभाव से व्यक्ति कभी भी एक स्थान पर टिककर नही बैठता है. इस राशि की गणना पृथ्वी तत्व राशियों में की जाती है.
http://ptanilji.blogspot.in/
मकर लग्न होने आपकी कुछ विशेषताओं के बारे में बताने का प्रयास करते हैं. मकर लग्न के प्रभाव से आपकी आँखे बहुत सुंदर होती हैं. आपका मुख मगरके समान पतला, लंबा व सुंदर होता है.
इस लग्न के प्रभाव से आपकी स्मरण शक्ति अदभुत होती है. आप विवेकशील व दृढ़ निश्चयी व्यक्ति हैं. अपनी विवेकशीलता के आधार पर ही निर्णय लेते हैं और जो एक बार निर्णय ले लिया तब उसी पर ही दृढ़ भी रहते हैं.
सामाजिक विषयो से आप पीछे हटते हैं लेकिन आप व्यवहारिक व्यक्ति होते हैं. आपको हवाई किले बनाना अच्छा नहीं लगता है. आप परिस्थितियों के अनुसार समझौता करने में प्रवीण होते हैं. यह आपका एक बहुत गुण होता है.
आपको मकर लग्न के लिए शुभ रत्नो के बारे में बताएँ. आपका लग्न मकर होने से शनि लग्नेश होकर शुभ होता है और नीलम इसके लिए अनुकूल रत्न है. यदि आप नीलम खरीदने में असमर्थ हैं तब आप इसका उपरत्न धारण कर सकते हैं.
इस लग्न के लिए बुध पंचमेश होकर अनुकूल होता है और आप बुध के लिए पन्ना रत्न धारण कर सकते हैं. शुक्र इस लग्न के लिए योगकारक ग्रह होता है, इसलिए डायमंड शुभ रत्न होता है लेकिन आप इसका उपरत्न ओपल या जर्कन भी पहन सकते है.
कुंडली में अशुभ ग्रहों से संबंधित दशा चल रही हो तब ग्रह का मंत्र जाप नियमित रुप से करना चाहिए. इससे अशुभ फलों में कमी आती है. एक बात आपको यह ध्यान रखनी चाहिए कि जो शुभ ग्रह कुंडली में निर्बल अवस्था में स्थित हों उन्हीं का रत्न धारण करना चाहिए.
मकर लग्न होने से आपके लिए शुभ ग्रह कौन से होगें उसके बारे में बताते हैं. शनि ग्रह मकर राशि का स्वामी होता है इसलिए शनि लग्नेश होने से शुभ होता है. मकर लग्न के नवम भाव में कन्या राशि आती है इसलिए बुध त्रिकोण का स्वामी होने से शुभ होता है.
मकर लग्न के लिए शुक्र पंचम व दशम का स्वामी होकर शुभ होता है. पंचम त्रिकोण भाव तो दशम की गिनती केन्द्र स्थान में होती है. इन दोनो भावों का स्वामी होने से शुक्र इस लग्न के लिए योगकारी बन जाता है.
आइए अंत में हम मकर लग्न के लिए अशुभ ग्रहों की बात करते हैं. इस लग्न के लिए बृहस्पति अति अशुभ होते हैं. बृहस्पति बारहवें व तीसरे भाव के स्वामी हो जाते हैं और दोनो ही भावों को शुभ नही माना जाता है.
मंगल भी इस लग्न के लिए कुछ विशेष फल प्रदान करने वाले नहीं होते है. सूर्य इस कुंडली के लिए अष्टमेश होकर शुभ नहीं हैं हालांकि इन्हें अष्टमेश होने का दोष लगता नही है. चंद्रमा इस लग्न के लिए सप्तमेश होने से मारक हो जाते हैं जबकि इन्हें मारक का दोष लगता नहीं है. लेकिन यह जहाँ जाते हैं और जिन ग्रहों के साथ संबंध बनाते हैं, वहाँ मारकत्व का प्रभाव छोड़ देते हैं.

शुभमस्तु !!

Thursday, April 28, 2016

धनु लग्न में शुभ अशुभ योग.....

ज्योतिष शास्त्र में मनुष्य के जीवन की समस्त घटनाओं को जानने  के लिए हमारे ऋषि मुनियों ने तप और साधना कर जन्म कुंडली का साधन दिया उस जन्म कुंडली में नौ ग्रह, बारह राशियाँ तथा सत्ताईस नक्षत्रों का वर्णन किया इन सबके आपस में जो योग बनते है और दशाओं का ज्ञान से मनुष्य अपने भविष्य में शुभ अशुभ देखने की कौशिश करता है.

उसी अन्तरिक्ष विज्ञान के अनुसार हमारा अन्तरिक्ष 12 भागों में विभाजित कर प्रत्येक भाग को 30 डिग्री का मान कर उसमें नक्षतों का मान निश्चित किया तथा उन 12 भागों को अलग अलग नाम से प्रतिष्ठित किया गया,

आज हम नवम भाग के बारें में चर्चा करेंगे जिसे "धनु  राशि " नाम से जानते है.वैदिक ज्योतिष में प्रत्येक राशि का अलग अलग महत्व है, धनु  राशि का विस्तार 240 से 270 अंश का होता है,यह राशि स्वभाव से द्वि-स्वभाव मानी गई है. इस कारण व्यक्ति का स्वभाव कई बार डांवा डोल सा रहता है.इस राशि का तत्व अग्नि है और अग्नि के प्रभाव से व्यक्ति तेज तर्रार होता है.
धनु राशि के स्वामी ग्रह बृहस्पति हैं, जिन्हें अत्यधिक शुभ ग्रह माना गया है. इस राशि का प्रतीक चिन्ह एक घोड़ा है जिसकी आकृति ऊपर से मानव जैसी है और उसके हाथ में तीर है अर्थात इस राशि का प्रतीक चिन्ह आधा मानव और आधा घोड़ा है.
धनु लग्न के जातकों की विशेषताओ को जानने का प्रयास करते हैं. धनु राशि कालपुरुष की कुंडली में नवम‌ भाव में आती है. जब कालपुरुष कुंडली का नवम भाव लग्न बनता है तब ऎसे व्यक्ति को भाग्यशाली समझा जाता है.
इस राशि की गणना अग्नि तत्व राशि के रुप में होती है, इसलिए अग्नि तत्व लग्न होने से आपके भीतर अत्यधिक तीव्रता होगी. आपको क्रोध भी अधिक आने की संभावना बनती है. आप अत्यधिक फुर्तीले और अपनी धुन के पक्के व्यक्ति होगें. एक बार जिस काम को करने का निर्णय ले लिया तब उसे आप पूरा करके ही दम लेगें. आपकी एक विशेषता यह होगी कि किसी भी निर्णय को लेने में आप जरा भी देर नहीं लगाएंगें.
धनु लग्न होने से आपके लिए कौन से ग्रह शुभ हो सकते हैं आइए इसे जानने का प्रयास करें. इस लग्न के लिए बृहस्पति लग्नेश होकर शुभ हो जाते हैं. लग्न के स्वामी को सदा शुभ माना जाता है.इस लग्न के लिए मंगल त्रिकोणेश होकर शुभ हो जाते हैं. हालांकि मंगल की दूसरी राशि वृश्चिक बारहवें भाव में पड़ती है, लेकिन तब भी यह शुभ होता है.
इस लग्न के लिए सूर्य नवमेश होकर अति शुभ होते हैं. नवम भाव कुंडली का सबसे बली त्रिकोण भाव होता है. इसी भाव से व्यक्ति के भाग्य का भी निर्धारण होता है. धनु लग्न के लिए शुभ ग्रहों की शुभता कुंडली में उनकी स्थिति तथा बल पर निर्भर करेगी. यदि शुभ ग्रह पीड़ित या निर्बल है तब शुभ फलों की प्राप्ति में कमी हो सकती है.
इस लग्न के लिए कौन से ग्रह अशुभ हो सकते हैं, अब उनके बारे में बात करते हैं. धनु लग्न के लिए शनि अशुभ माना गया है. यह तीसरे व चतुर्थ भाव के स्वामी होते हैं. इस लग्न के लिए बुध सम होते हैं और इसे केन्द्राधिपति दोष भी होता है अर्थात बुध की दोनो राशियाँ केन्द्र स्थान में ही पड़ती है.
इस लग्न के लिए चंद्रमा अष्टमेश होकर अशुभ होते हैं हालांकि चंद्रमा को अष्टमेश होने का दोष नहीं लगता है लेकिन यह जहाँ और जिस ग्रह के साथ स्थित होगें उसे दूषित कर देगें. शुक्र इस लग्न में षष्ठेश व एकादशेश होकर अशुभ होते हैं.
अंत में हम आपको शुभ रत्नो के बारे में जानकारी उपलब्ध कराने का प्रयास करते हैं. इस लग्न के लिए पुखराज धारण करना शुभ होता है. धनु लग्न के स्वामी ग्रह बृहस्पति होते हैं और पुखराज उनके लिए ही पहना जाता है. मंगल के लिए मूंगा व सूर्य के लिए माणिक्य पहनना भी शुभ होता है. पुखराज महंगा रत्न है यदि आप इसे खरीदने में सक्षम नहीं हैं तब इसके स्थान पर इसका उपरत्न सुनहैला भी पहन सकते हैं.
एक बात का ध्यान यह रखें कि कुंडली में यदि बृहस्पति, मंगल अथवा सूर्य निर्बल हो तभी इनका रत्न पहनें. यदि बली अवस्था में स्थित हैं तब आपको इनका रत्न पहनने की आवश्यकता नहीं है. यदि जन्म कुंडली में अशुभ ग्रह की दशा चल रही हो तब उस ग्रह से संबंधित मंत्रों का जाप रोज करें. अशुभ ग्रह की दशा में आप दान व व्रत भी कर सकते हैं.
शुभमस्तु !!

Wednesday, April 27, 2016

वृश्चिक लग्न का शुभ अशुभ विचार.....

ज्योतिष शास्त्र में मनुष्य के जीवन की समस्त घटनाओं को जानने  के लिए हमारे ऋषि मुनियों ने तप और साधना कर जन्म कुंडली का साधन दिया उस जन्म कुंडली में नौ ग्रह, बारह राशियाँ तथा सत्ताईस नक्षत्रों का वर्णन किया इन सबके आपस में जो योग बनते है और दशाओं का ज्ञान से मनुष्य अपने भविष्य में शुभ अशुभ देखने की कौशिश करता है.

उसी अन्तरिक्ष विज्ञान के अनुसार हमारा अन्तरिक्ष 12 भागों में विभाजित कर प्रत्येक भाग को 30 डिग्री का मान कर उसमें नक्षतों का मान निश्चित किया तथा उन 12 भागों को अलग अलग नाम से प्रतिष्ठित किया गया,

आज हम आठवें  भाग के बारें में चर्चा करेंगे जिसे "वृश्चिक  राशि " नाम से जानते है.वैदिक ज्योतिष में प्रत्येक राशि का अलग अलग महत्व है, वृश्चिक  राशि का विस्तार 210 से 240 अंश का होता है,इस राशि की गणना जल तत्व के रुप में की जाती है इसलिए इस राशि के प्रभाव से व्यक्ति लचीला हो सकता है.


इस राशि की गणना स्थिर राशि में की गई है इसलिए व्यक्ति बहुत जल्दी बदलाव पसंद नही करता है. इस राशि का स्वामी ग्रह मंगल है और मंगल को ग्रहों में सेनापति का दर्जा दिया गया है. इस राशि का प्रतीक चिन्ह बिच्छू माना गया है. इस राशि के प्रभाव से व्यक्ति भी बिच्छू के समान पलट कर जवाब देने वाला होता है.

अब वृश्चिक लग्न के बारे में बात करते हैं. वृश्चिक राशि कालपुरुष की कुंडली में आठवें भाव में आतीहैऔरआठवाँ भाव बाधाओ का माना जाता है. जब जन्म कुंडली में आठवाँ भाव जन्म लग्न बनता है तबव्यक्ति को कुछ बाधाओं का सामना जीवन में करना पड़ सकता है.उसे कई बार उतार-चढ़ाव से होकर गुजरना पड़ सकता है.

आपके वृश्चिक लग्न का स्वामी मंगल होता है जिससे आप पर मंगल का प्रभाव अधिक होगा. आप स्थिर स्वभाव के लेकिन जिद्दी प्रवृति के व्यक्ति होगें. आपके मन में एक बार जो धारण बैठ गई तब उसे कोई नहीं बदल पाएगा.
वृश्चिक राशि की गणना जल तत्व के रुप में की जाती है इसलिए आप जल के समान लचीली प्रवृति के भी हो सकते हैं. जितनी जल्दी क्रोध आएगा उतनी जल्दी आप पिघल भी जाएंगें. आप साहसी तथा पराक्रमी होगें. आप के भीतर ऊर्जा की मात्रा भी अधिक होगी. जीवन में एक बार जिससे शत्रुता हो जाए तब उससे कभी दुबारा हाथ नही मिलाएंगे.
आइए अब वृश्चिक लग्न के लिए शुभ ग्रहो की बात करते हैं. इस लग्न का स्वामी मंगल लग्नेश होकर शुभ होता है. चंद्रमा इस लग्न के लिए नवम भाव के स्वामी होकर अति शुभ हो जाते हैं. नवम भाव बली त्रिकोण है और भाग्य भाव भी है.
इस लग्न के लिए बृहस्पति भी पंचमेश होकर शुभ होते हैं हालांकि इनकी दूसरी राशि द्वित्तीय भाव में पड़ती है लेकिन तब भी बृहस्पति को शुभ ही माना जाएगा. इस लग्न के लिए सूर्य, दशमेश होकर सम हो जाते हैं.
शुभ ग्रहों के बाद अशुभ ग्रहों के बारे में भी आपको बताने का प्रयास किया जा रहा है. वृश्चिक लग्न के लिए शनि शुभ ग्रह नहीं माना जाता है. शनि तीसरे व चौथे भाव के स्वामी होते हैं. इस लग्न के लिए बुध भी अशुभ माना गया है. बुध अष्टमेश व एकादशेश होकर अशुभ बन जाते हैं.
शुक्र को इस लग्न के लिए अति अशुभ माना गया है क्योकि शुक्र सातवें भाव के स्वामी होकर मारक बन जाते हैं और बारहवें भाव के स्वामी होकर व्ययेश बनते हैं. शुक्र इस लग्न के लिए प्रबल मारकेश का काम करते हैं.
अंत में आपको इस लग्न के लिए शुभ रत्नों के बारे में बताया जाता है. वृश्चिक लग्न के लिए मूंगा, मोती व पुखराज शुभ रत्न माने गये हैं. पुखराज रत्न को बृहस्पति के लिए पहना जाता है लेकिन बृहस्पति दूसरे भाव का भी स्वामी माना जाता है इसलिए बृहस्पति की स्थिति का आंकलन पहले कुंडली में कर लेना चाहिए उसके बाद ही पुखराज धारण करना चाहिए. मूगा रत्न मंगल के लिए तथा मोती चंद्रमा के लिए पहना जाता है. जब कुंडली में इन रत्नो से संबंधित शुभ ग्रह कमजोर हो तभी इन्हें पहने अन्यथा आपको नहीं पहनने चाहिए.
कुंडली में जिस ग्रह की दशा चल रही हो उससे संबंधित मंत्र जाप अवश्य करने चाहिए. इससे ग्रह शुभ फल देने में अधिक सक्षम होगा. अशुभ ग्रह की दशा में मंत्र जाप के साथ दान, व्रत तथा उस ग्रह की वस्तुओं से स्नान भी किया जा सकता है. इससे अशुभ फलों में कमी आती है.
शुभमस्तु !!

Tuesday, April 26, 2016

जल से वशीकरण....

वशीकरण कर्म अनुसार सबसे महत्वपूर्ण स्थान "जल" का है, जैसा की आप सब जानते है कि जल ही जीवन है, बिना जल के कोई भी मनुष्य, जीव जंतु और सभी वनस्पति भी जल पर आधारित है.

बिना जल के जीवन का अस्तित्व ही नही है तथा बिना जल के हमारा कर्म काण्ड, पूजा पाठ सभी अधूरा है,

गोस्वामी तुलसी दास जी ने भी श्री राम चरित मानस  में स्पष्ट लिखा है की मनुष्य का शरीर भी जल तत्व या जल से बना हुआ है, “क्षिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम शरीरा।।” पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और पवन – इन पंचतत्वों से यह अत्यंत अधम शरीर रचा गया है.अतः स्पष्ट है की जल ही वो महत्वपूर्ण तत्व है जो कि सभी मनुष्यों में जीवन दायनी का धर्म निभाता है,“यथा पिण्डे तथा ब्रह्माण्डे”
इसी जल के द्वारा हम वशीकरण आदि सभी क्रिया करने में सक्षम भी हो जाते है.

और यही जल जब  प्रत्यक्ष रूप से जीवन की संजीवनी के रूप में कार्य कर रहा है, तो षट कर्मों, महाविद्या
उपासना, आदि सभी तंत्र के क्षेत्रों में जल की महत्वपूर्ण भूमिका है, 

यही जल गुप्त रूप से सभी क्रियाओं में अत्यंत लाभ देने में सक्षम है. आज इसी जल के द्वारा हम किस प्रकार से वाशिकर्ण कर सकते है, इस विषय पर प्रकाश डालने का प्रयास कर रहा हूँ.

http://vashikaran-science.blogspot.in/
जीवन का आरम्भ प्रातः से होता है और उस प्रातः का आरम्भ जल से होता है.जल के बिना जीवन की सभी क्रिया किसी भी दुसरे तत्व या वस्तु से नही हो सकती.कभी सोचा है. 

भारतीय संस्कृति में जब भी कोई अतिथि आयें तो घर की लक्ष्मी अर्थात बहन, बेटी आदि के द्वारा सर्वप्रथम जल दिया जाता था, इस समय भी बहुत कम परिवारों में ऐसा होता है, अधिकतर आजकल तो घर का नौकर ही जल लेकर सामने आता दिखाई देता है,....................आगे पड़ने के लिए क्लिक करें.

Monday, April 25, 2016

तुला लग्न का विचार....

ज्योतिष शास्त्र में मनुष्य के जीवन की समस्त घटनाओं को जानने  के लिए हमारे ऋषि मुनियों ने तप और साधना कर जन्म कुंडली का साधन दिया उस जन्म कुंडली में नौ ग्रह, बारह राशियाँ तथा सत्ताईस नक्षत्रों का वर्णन किया इन सबके आपस में जो योग बनते है और दशाओं का ज्ञान से मनुष्य अपने भविष्य में शुभ अशुभ देखने की कौशिश करता है.

उसी अन्तरिक्ष विज्ञान के अनुसार हमारा अन्तरिक्ष 12 भागों में विभाजित कर प्रत्येक भाग को 30 डिग्री का मान कर उसमें नक्षतों का मान निश्चित किया तथा उन 12 भागों को अलग अलग नाम से प्रतिष्ठित किया गया,

आज हम सातवें भाग के बारें में चर्चा करेंगे जिसे "तुला  राशि " नाम से जानते है.वैदिक ज्योतिष में प्रत्येक राशि का अलग अलग महत्व है, तुला  राशि का विस्तार 180 से 210 अंश का होता है,इस राशि का तत्व वायु है इसलिए इस राशि के व्यक्तियों की विचारशक्ति अच्छी होती है.
इस राशि की गणना चर राशि में होती है अर्थात इस राशि के प्रभाव से व्यक्ति कुछ ना कुछ करने में व्यस्त रहता है. इस राशि का स्वामी ग्रह शुक्र है जिसकी गणना नैसर्गिक शुभ ग्रहों में होती है और यह एक सौम्य ग्रह होता है. तुला राशि का चिन्ह एक तराजू है जो जीवन में संतुलन को दर्शाता है.
तुला लग्न का आपके व्यक्तित्व पर क्या प्रभाव होता है आइए उसके बारे में जानें. इस लग्न के प्रभावस्वरुप आप संतुलित व्यक्तित्व के व्यक्ति होते हैं और आप न्यायप्रिय व्यक्ति भी होते हैं.
शुक्र को सुंदरत का कारक ग्रह माना जाता है इसलिए शुक्र के प्रभाव से आप सौन्दर्य प्रिय व्यक्ति होते हैं. सुंदर चीजों को एकत्रित करना आपका शौक हो सकता है. आपको नित नई फैशनेबल वस्त्र पहनना पसंद हो सकता है.
शुक्र को भोग का कारक भी माना जाता है. आपको विलासिता की वस्तुएँ खरीदना व उनके उपभोग करने में रुचि होगी. वायु प्रधान होने से आपकी विचारशक्ति बहुत अच्छी होती है और नित नई योजनाएँ बनाते हैं. तुला राशि को बनिक राशि भी कहा गया है इसलिए यदि तुला राशि आपके लग्न में उदय होने से आप बहुत अच्छे व्यवसायी होते हैं. आप बिजनेस चलाने के लिए नई - नई योजनाओं को बना सकते हैं.
आपको गीत,संगीत, नृत्य व अन्य कलाओ में रुचि हो सकती है क्योकि शुक्र को कला का भी कारक माना गया है. तुला राशि के स्वामी शुक्र होते हैं और बृहस्पति के साथ उन्हें भी गुरु का व मंत्री का दर्जा दिया गया है. इसलिए आप सत्यवादी व अनुशासनप्रिय व्यक्ति होते हैं.

तुला लग्न के शुभ ग्रहों की चर्चा करते हैं. इस लग्न का स्वामी शुक्र होता है इसलिए शुक्र लग्नेश होकर इस लग्न लिए शुभ होता है. इस लग्न के लिए शनि केन्द्र व त्रिकोण के स्वामी होकर अति शुभ होते हैं और इस लग्न के जातको के लिए योगकारी ग्रह बन जाते हैं.
बुध इस लग्न के लिए नवम भाव के स्वामी होकर शुभ होते हैं. नवम भाव कुंडली का अति बली त्रिकोण होता है और आपका भाग्य भी यही भाव निर्धारित करता है. तुला लग्न के लिए चंद्रमा दशम के स्वामी होकर सम होते हैं. दशम भाव केन्द्र स्थान है और यहाँ के स्वामी तटस्थ हो जाते हैं.
तुला लग्न के लिए मंगल प्रबल मारक ग्रह बन कर अति अशुभ हो जाता है. इस लग्न के लिए मंगल दूसरे व सातवें भाव का स्वामी होता है और इन दोनो भावो की गणना मारक भाव के रुप में होती है.
तुला लग्न के लिए सूर्य त्रिषडाय भाव के स्वामी होकर अशुभ होते हैं. भले ही यह लाभ दिलाते हों लेकिन एकादश भाव की गणना अशुभ भाव में होती है. तुला लग्न के लिए तीसरे व छठे भाव के स्वामी होकर बृहस्पति सबसे अशुभ बन जाते हैं. तीसरे और छठे की गणना त्रिक भावों के रुप में होती है.
तुला लग्न के लिए डायमंड, नीलम व पन्ना शुभ होते हैं. आप अगर महंगे रत्न नहीं खरीद सकते हैं तब उपरत्न भी पहन सकते हैं. शुक्र के लिए डायमंड, शनि के लिए नीलम और बुध के लिए पन्ना पहनते हैं.
आपकी कुंडली में जिस ग्रह की दशा चल रही हो उसके मंत्र जाप भी आपको नियमित रुप से 108 बार करना चाहिए. कुंडली में अशुभ ग्रह की दशा चल रही हो तब मंत्र जाप के साथ दान व व्रत भी कर सकते हैं, इससे अशुभ फलों में कमी आ सकती है.
शुभमस्तु !!

कन्या लग्न शुभ अशुभ विचार .......

ज्योतिष शास्त्र में मनुष्य के जीवन की समस्त घटनाओं को जानने  के लिए हमारे ऋषि मुनियों ने तप और साधना कर जन्म कुंडली का साधन दिया उस जन्म कुंडली में नौ ग्रह, बारह राशियाँ तथा सत्ताईस नक्षत्रों का वर्णन किया इन सबके आपस में जो योग बनते है और दशाओं का ज्ञान से मनुष्य अपने भविष्य में शुभ अशुभ देखने की कौशिश करता है.

उसी अन्तरिक्ष विज्ञान के अनुसार हमारा अन्तरिक्ष 12 भागों में विभाजित कर प्रत्येक भाग को 30 डिग्री का मान कर उसमें नक्षतों का मान निश्चित किया तथा उन 12 भागों को अलग अलग नाम से प्रतिष्ठित किया गया,

आज हम छठे  भाग के बारें में चर्चा करेंगे जिसे "कन्या राशि " नाम से जानते है.वैदिक ज्योतिष में प्रत्येक राशि का अलग अलग महत्व है, कन्या  राशि का विस्तार 150 से 180 अंश का होता है,इस राशि का स्वामी बुध होता है और इसे सभी ग्रहों में राजकुमार की उपाधि प्रदान की गई है. इसलिए इसके प्रभाव वाला व्यक्ति भी स्वयं को राजकुमार से कम नहीं समझता है.
यह राशि स्वभाव से द्वि-स्वभाव राशि के अन्तर्गत आती है. इस राशि का तत्व पृथ्वी है और पृथ्वी तत्व होने से इसमें सहनशक्ति भी होती है. इस राशि का प्रतीक चिन्ह एक लड़की है जो नाव में सवार है और उसके एक हाथ में गेहूँ की बालियाँ व दूसरे में लालटेन है जो मानव सभ्यता का विकास दिखाती है. लालटेन को प्रकाश का प्रतीक माना गया है. नाव में सवार यह निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है.
http://ptanilji.blogspot.com/
आइए एक नजर कन्या राशि की विशेषताओं पर भी डालते हैं. कालपुरुष की कुंडली में यह राशि छठे भाव में पड़ती है और छठा भाव रोग, ऋण व शत्रुओ का माना जाता है. इसी भाव से प्रतियोगिताएँ व प्रतिस्पर्धाएँ भी देखी जाती हैं.
जब यह राशि लग्न में उदय होती है तब व्यक्ति को जीवन में बहुत सी प्रतिस्पर्धाओ का सामना करना पड़ता है. इसलिए यदि आपका कन्या लग्न होने पर आपको जीवन में बिना प्रतिस्पर्धा के शायद ही कुछ मिले. जीवन में एक बार थोड़ा संघर्ष करना ही पड़ता है.
कन्या राशि के प्रभाव से आपके भीतर संघर्षों से लड़ने की क्षमता होती है क्योकि यह राशि पृथ्वी तत्व राशि मानी गई है इसलिए यह परिस्थिति से पार निकलने में सक्षम होती है. बुध को बौद्धिक क्षमता का कारक माना गया है इसलिए बुध के प्रभाव से आप बुद्धिमान व व्यवहार कुशल व्यक्ति होते हैं.
आप तर्क-वितर्क में भी कुशल होते हैं और हाजिर जवाब भी होते हैं. आपके इसी गुण के कारण सभी लोग आपसे प्रभावित रहते हैं. आप स्वभाव से संकोची व शर्मीले होते हैं और आप आसानी से लोगो से मिलते-जुलते नहीं हैं, थोड़े झिझकने वाले व्यक्ति होते हैं. आप जीवन में कम्यूनिकेशन व पढ़ने-लिखने वाले कामों में सफलता ज्यादा पा सकते हैं.
कन्या लग्न के लिए शुभ ग्रहो की बात करते हैं. कन्या लग्न का स्वामी बुध लग्नेश होने से शुभ हो जाता है. शुक्र भाग्य भाव का स्वामी होने से शुभ होता है. भाग्य भाव कुंडली का नवम भाव है जो कि सबसे अधिक बली त्रिकोण माना गया है.
शनि कुंडली के पंचम व छठे भाव दोनो का स्वामी होता है. पंचम का स्वामी होने से शनि शुभ ही होता है लेकिन छठे भाव के गुण भी दिखा सकता है यदि कुंडली में इसकी स्थिति सही नही है तो.
सभी शुभ माने जाने वाले ग्रहों की शुभता कुंडली में इनकी स्थिति पर निर्भर करती है. यदि यह कुंडली में निर्बल हैं तब इनकी दशा/अन्तर्दशा में शुभ फलों में कमी हो सकती है.
शुभ ग्रहो के बाद अब कन्या लग्न के लिए अशुभ ग्रहो की भी बात करते हैं. इस लग्न के लिए बृहस्पति बाधकेश का काम करता है. कन्या लग्न द्वि-स्वभाव राशि होती है और द्वि-स्वभाव राशि के लिए सप्तमेश बाधक ग्रह माना गया है.
बृहस्पति की दोनो राशियाँ केन्द्रों में पड़ती है इसलिए बृहस्पति को केन्द्राधिपति होने का दोष भी लगता है. सूर्य इस लग्न के लिए बारहवें भाव का स्वामी होने से शुभ नही होता हैं. चंद्रमा भले ही इस लग्न के लिए एकादश भाव के स्वामी होकर लाभ देने वाले हैं लेकिन त्रिषडाय के स्वामी होने से अशुभ बन जाते है.
मंगल इस लग्न के लिए अत्यंत अशुभ है क्योकि दो अशुभ भावों के स्वामी होते हैं. कन्या लग्न में मंगल तीसरे व अष्टम भाव के स्वामी होते है और दोनो ही भाव शुभ नही माने जाते हैं.
अंत में आपको शुभ रत्नो की जानकारी दी जाती है. इस लग्न के लिए पन्ना, डायमंड व नीलम शुभ रत्न माने गए हैं. पन्ना बुध के लिए, डायमंड शुक्र के लिए व नीलम शनि के लिए पहना जाता है.

आप यदि महंगे रत्न नहीं खरीद सकते तब इनके उपरत्न भी पहन सकते हैं. पन्ना के लिए हरा टोपाज, डायमंड के लिए जर्कन या ओपल व नीलम के लिए नीली या लाजवर्त भी पहने जा सकते हैं. जिस ग्रह की दशा कुंडली में चल रही हो उससे संबंधित मंत्र का जाप नियमित रुप से करना चाहिए. इससे अशुभ फलों में कमी आती है और शुभ फलो की बढ़ोतरी होती है.
शुभमस्तु!!

Sunday, April 24, 2016

सिंह लग्न का शुभ विचार..........

ज्योतिष शास्त्र में मनुष्य के जीवन की समस्त घटनाओं को जानने  के लिए हमारे ऋषि मुनियों ने तप और साधना कर जन्म कुंडली का साधन दिया उस जन्म कुंडली में नौ ग्रह, बारह राशियाँ तथा सत्ताईस नक्षत्रों का वर्णन किया इन सबके आपस में जो योग बनते है और दशाओं का ज्ञान से मनुष्य अपने भविष्य में शुभ अशुभ देखने की कौशिश करता है.

उसी अन्तरिक्ष विज्ञान के अनुसार हमारा अन्तरिक्ष 12 भागों में विभाजित कर प्रत्येक भाग को 30 डिग्री का मान कर उसमें नक्षतों का मान निश्चित किया तथा उन 12 भागों को अलग अलग नाम से प्रतिष्ठित किया गया,

आज हम पांचवें  भाग के बारें में चर्चा करेंगे जिसे "सिंह   राशि " नाम से जानते है.वैदिक ज्योतिष में प्रत्येक राशि का अलग अलग महत्व है, सिंह  राशि का विस्तार 120 से 150 अंश का होता है,इस राशि को अग्नि तत्व राशि की श्रेणी में रखा गया है.
सिंह राशि स्थिर राशि होती है अर्थात इस राशि के प्रभाव में आने वाला व्यक्ति स्थिर रहता है उसे जीवन में टिकाव पसंद होता है. इस राशि का स्वामी ग्रह सूर्य है जिसे सभी ग्रहों में राजा की उपाधि प्राप्त है. सिंह राशि का प्रतीक चिन्ह शेर है और शेर को भी जंगल का राजा माना गया है.
आपका जन्म अगर सिंह लग्न में हुआ है तब आप साहस से भरपूर होगें. आप निर्भीक व पराक्रमी व्यक्ति होगें. प्रतिकूल परिस्थितियों में भी आप आसानी से घबराने वाले व्यक्ति नहीं होते हैं. आप अपनी संस्था के कुशल संचालक हो सकते हैं अथवा आपको जो भी काम दिया जाएगा उसे आप बहुत ही खूबसूरती से संचालित करते हैं और कामयाब होते हैं.
सिंह राशि स्थिर स्वभाव की राशि है इसलिए आपके कार्यों में ठहराव रहेगा और आप बुद्धिमत्तापूर्ण रुप से निर्णय लेगें. आप जल्दबाजी में कोई काम करना पसंद नहीं करेगें. आप पहले उसके दूरगमी परिणाम देखेगे फिर आगे बढे़गें.
आपके अंदर नेतृत्व के सभी गुण मौजूद होगें और आप एक अच्छे लीडर बन सकते हैं. आप अपनी टीम को आगे बढ़ाने की सभी विशेषताएँ रखते हैं. आप हठीले किस्म के व्यक्ति हो सकते हैं. एक बार जो जिद ठान ली तो बस ठान ली, उसे फिर कोई नहीं बदल सकता है. आप अत्यधिक महत्वाकांक्षाएँ भी रखते हैं और उन्हें पूरा करने का हर भरसक प्रयास भी करते हैं. आपके अंदर आत्मविश्वास भरा होता है, इसी कारण आपको कोई आसानी से आपके इरादों से हिला नही सकता है.
सिंह राशि की गिनती राजसी राशि में की जाती है और इसके स्वामी सूर्य को सभी नौ ग्रहों में राजा की उपाधि दी गई है, इसलिए आपके भीतर भी राजनीति में भाग लेने की इच्छा रहती है और मौका मिलते ही आप किसी ना किसी संस्था के सदस्य बनने के लिए चुनाव में भाग ले भी लेते हैं.
सिंह लग्न के लिए कौण से ग्रह शुभ हो सकते हैं आइए उनके बारे में चर्चा करते हैं. इस लग्न के लिए सूर्य लग्नेश होकर अति शुभ बन जाता है. सिंह लग्न के लिए दूसरा शुभ ग्रह बृहस्पति होता है. बृहस्पति पंचम भाव के स्वामी होते हैं जो कि सदा शुभ होता है. हालांकि बृहस्पति की मीन राशि अष्टम भाव में पड़ती है लेकिन तब भी इसे शुभ ही माना गया है.
बृहस्पति की मूल त्रिकोण राशि धनु, त्रिकोण स्थान, पंचम में पड़ती है, इसलिए यह ग्रह शुभ ही माना गया है. मंगल इस लग्न के लिए योगकारी होने से शुभफलदायी होते हैं क्योकि मंगल चतुर्थ व नवम भाव के स्वामी होते हैं.
चतुर्थ भाव केन्द्र् माना गया है और नवम भाव त्रिकोण माना गया है. इसलिए मंगल केन्द्र्/त्रिकोण के स्वामी होकर अत्यधिक शुभ बन जाते है.
सिंह लग्न के लिए कौन से ग्रह अशुभ फल देने की क्षमता रखते हैं, अब उनके बारे में जानने का प्रयास करते हैं. सिंह लग्न के लिए शुक्र तीसरे व दशम भाव का स्वामी होकर सम बन जाता है.
सिंह लग्न के लिए शनि छठे व सातवें के स्वामी होकर अति अशुभ बन जाते हैं. चंद्रमा द्वादश भाव के स्वामी होकर अशुभ होते हैं. द्वादश भाव को व्यय भाव के रुप में भी देखा जाता है. बुध इस लग्न के लिए धनेश व लाभेश होते हैं अर्थात दूसरे व एकादश भाव के स्वामी होते हैं. बुध इस लग्न के लिए दूसरे भाव के स्वामी होकर मारक बन जाते हैं और साथ ही त्रिषडाय भाव के स्वामी भी होने से और अशुभ हो जाते हैं.अंत में सिंह लग्न के लिए शुभ रत्नों की चर्चा भी कर ही लेते हैं. सिंह लग्न होने से आपके लिए माणिक्य शुभ रत्न है क्योकि आपके लग्न का स्वामी सूर्य है और माणिक्य सूर्य के अधिकार में आता है.
आपके लिए पुखराज व मूंगा धारण करना भी शुभ है. पुखराज आप बृहस्पति के लिए पहन सकते हैं और मूंगा आप मंगल के लिए धारण कर सकते हैं. आप चाहे तो इन रत्नों का उपरत्न भी पहन सकते हैं.
जन्म कुंडली में जिस ग्रह की दशा चल रही हो उससे संबंधित मंत्र जाप भी आपको अवश्य करने चाहिए. कुंडली में अशुभ ग्रह से संबंधित ग्रह की दशा में आप दानादि भी कर सकते हैं और अशुभ ग्रह से संबंधित वस्तुओ से स्नान भी कर सकते हैं.
शुभमस्तु !!

Friday, April 22, 2016

कर्क लग्न का विशेष विचार....

ज्योतिष शास्त्र में मनुष्य के जीवन की समस्त घटनाओं को जानने  के लिए हमारे ऋषि मुनियों ने तप और साधना कर जन्म कुंडली का साधन दिया उस जन्म कुंडली में नौ ग्रह, बारह राशियाँ तथा सत्ताईस नक्षत्रों का वर्णन किया इन सबके आपस में जो योग बनते है और दशाओं का ज्ञान से मनुष्य अपने भविष्य में शुभ अशुभ देखने की कौशिश करता है.

उसी अन्तरिक्ष विज्ञान के अनुसार हमारा अन्तरिक्ष 12 भागों में विभाजित कर प्रत्येक भाग को 30 डिग्री का मान कर उसमें नक्षतों का मान निश्चित किया तथा उन 12 भागों को अलग अलग नाम से प्रतिष्ठित किया गया,

आज हम चौथे  भाग के बारें में चर्चा करेंगे जिसे "कर्क  राशि " नाम से जानते है.वैदिक ज्योतिष में प्रत्येक राशि का अलग अलग महत्व है, कर्क  राशि का विस्तार 90 से 120 अंश का होता है, कर्क  राशि का स्वामी चंद्रमा ग्रह है, और इसका चिन्ह केकड़ा होता है. केकड़ा पानी के पास दलदली जमीन में रहता है.

इस राशि का तत्व जल होता है और यह स्त्री संज्ञक राशि होती है इसलिए इस राशि के पुरुषों में भी स्त्रियोचित्त व्यवहार देखने को मिल सकता है. कर्क राशि की गणना चर राशि में होती है इसलिए इस राशि के प्रभाव वाला व्यक्ति सदा कुछ ना कुछ करते रहता है.





यदि आपका लग्न कर्क है तब चंद्र कलाओ की भांति आपका मूड बना रहेगा, इसका अर्थ यह हुआ कि आप किसी भी बात पर बहुत जल्दी नाराज हो सकते हैं तो शीघ्र ही किसी अन्य बात पर खुश भी हो सकते हैं.

कर्क लग्न जल तत्व होता है इसलिए आप अत्यधिक भावुक व्यक्ति होगें. आप दूसरों के दुख से भी जल्दी ही पिघलने वाले व्यक्ति होगें. जरा - जरा सी बात से आपका मन बेचैन व व्याकुल हो सकता है. अत्यधिक भावुक होने से आपकी भावनाएँ आपके सभी निर्णयों में शामिल हो सकती है. इसलिए कोई भी निर्णय लेने से पहले आपको एक बार विचार अवश्य कर लेना चाहिए.
आप लचीले स्वभाव के व्यक्ति होते हैं इसलिए हर तरह की परिस्थिति में स्वयं को ढ़ालने में सक्षम भी होते हैं. आप केकड़े के समान होगें अर्थात जिस प्रकार केकड़ा अपने पंजें में एक बार किसी चीज को जकड़ लेता है तब उसे आसानी से छोड़ता नही हैं. उसी प्रकार आप जिस बात को पकड़ लेगें फिर उसे नहीं छोड़ेगें. एक बार जो मित्र बन गया उसकी मित्रता के लिए जी जान भी दे देगें लेकिन जिससे शत्रुता हो गई फिर उस से अच्छी तरह से शत्रुता ही निभाएंगे.
यदि किसी व्यक्ति से आप भावनात्मक रुप से जुड़ जाते हैं तब बरसों तक आप उसे निभाते भी हैं. आप बड़ी - बड़ी योजनाओ के सपने अधिक देखते हैं लेकिन साथ ही आप परिश्रमी व उद्यमी भी होते हैं. आपको कला से संबंधित क्षेत्रों में रुचि होती है. इसके अलावा आपको प्राकृतिक सौन्दर्य से भी लगाव होता है. आपको जलीय स्थान अच्छे लगते हैं और आप भ्रमणप्रिय व्यक्ति होते हैं.

कर्क लग्न के लिए कौन से ग्रह शुभ फल देगें उसके बारे में बात करते हैं. कर्क लग्न का स्वामी चंद्रमा होता है इसलिए आपके लिए यह अति शुभ प्रदान करने वाला ग्रह होगा. इस लग्न के लिए मंगल योगकारी ग्रह होता है इसलिए यह भी आपके लिए अति शुभ होगा.

मंगल पंचम भाव और दशम भाव का स्वामी होने से शुभ फल प्रदान करता है. पंचम त्रिकोण स्थान तो दशम केन्द्र स्थान होता है और केन्द्र्/त्रिकोण का संबंध होने पर शुभ फल मिलते हैं. गुरु इस लग्न के लिए भाग्येश होकर अति शुभ फल प्रदान करने वाला ग्रह होता है. गुरु की दूसरी राशि मीन नवम भाव में आती है. हालांकि गुरु की मूल त्रिकोण राशि, धनु छठे भाव में आती है लेकिन तब भी गुरु अशुभ फल नहीं देते हैं.
अंत में कर्क लग्न के लिए अशुभ ग्रहों की बात करते हैं. इस लग्न के लिए सूर्य सम माना जाता है क्योकि यह दूसरे भाव के स्वामी हैं और दूसरा भाव सम होता है. दूसरे भाव को मारक माना गया है लेकिन सूर्य को मारक का दोष नहीं लगता है. इसलिए यह कर्क लग्न के लिए सम हो जाते हैं.
इस लग्न के लिए बुध तीसरे और द्वादश भाव के स्वामी होने से अति अशुभ होते हैं. शुक्र चतुर्थ व एकादश भाव के स्वामी है लेकिन शुभ नहीं है. चतुर्थ भाव केन्द्र स्थान होने से तटस्थ हो जाता है और एकादश भाव त्रिषडाय भाव कहा जाता है.
कर्क लग्न के लिए शनि सबसे अधिक अशुभ माने जाते हैं क्योकि यह दो अशुभ भावों के स्वामी बन जाते हैं. शनि सप्तम भाव व अष्टम भाव के स्वामी हैं और दोनो ही भाव अशुभ हैं. सप्तम भाव मारक तो अष्टम भाव त्रिक भाव है.अंत में आपको कर्क लग्न के लिए शुभ रत्नो के बारे में भी बता देते हैं. आपके लिए मोती, मूंगा व पुखराज धारण करना शुभ होगा. अगर आप महंगे रत्न खरीदने में असमर्थ हैं तब आप चाहे तो इनके उपरत्न भी पहन सकते हैं.
लेकिन एक बात का ध्यान रखें कि इन रत्नों को आप तभी पहनें जब इनके स्वामी ग्रह कुंडली में कमजोर अवस्था में स्थित हों. आप चंद्रमा के लिए मोती, मंगल के लिए मूंगा व गुरु के लिए पुखराज पहन सकते है.
यदि आपकी जन्म कुंडली में किसी अशुभ ग्रह की दशा या अन्तर्दशा चल रही हो तब आप उसके मंत्रों का जाप अवश्य करें इससे अशुभ फलों में कमी होगी. आपकी कुंडली में जिस ग्रह की दशा चल रही हो उससे संबंधित दान व व्रत भी आप कर सकते हैं.
शुभमस्तु !!

Wednesday, April 20, 2016

मिथुन लग्न और शुभ अशुभ विचार....

ज्योतिष शास्त्र में मनुष्य के जीवन की समस्त घटनाओं को जानने  के लिए हमारे ऋषि मुनियों ने तप और साधना कर जन्म कुंडली का साधन दिया उस जन्म कुंडली में नौ ग्रह, बारह राशियाँ तथा सत्ताईस नक्षत्रों का वर्णन किया इन सबके आपस में जो योग बनते है और दशाओं का ज्ञान से मनुष्य अपने भविष्य में शुभ अशुभ देखने की कौशिश करता है.

उसी अन्तरिक्ष विज्ञान के अनुसार हमारा अन्तरिक्ष 12 भागों में विभाजित कर प्रत्येक भाग को 30 डिग्री का मान कर उसमें नक्षतों का मान निश्चित किया तथा उन 12 भागों को अलग अलग नाम से प्रतिष्ठित किया गया,

आज हम तीसरें भाग के बारें में चर्चा करेंगे जिसे "मिथुन राशि " नाम से जानते है.वैदिक ज्योतिष में प्रत्येक राशि का अलग अलग महत्व है, मिथुन राशि का विस्तार 60 से 90 अंश का होता है, मिथुन  राशि का स्वामी बुध ग्रह है, 


यह राशि स्वभाव से द्वि-स्वभाव राशि की श्रेणी में आती है अर्थात इसमें चर व स्थिर राशि दोनो के ही गुण विद्यमान होते हैं.
मिथुन राशि का तत्व वायु होता है और इस कारण इस राशि के व्यक्ति अत्यधिक कल्पनाशील होते हैं. यह भचक्र की पहली राशि है जिसका चिन्ह मानवाकृति है और उनके हाथ में वाद्य यंत्र हैं. इसीलिए इस राशि के लोगो को संगीत से प्रेम होता है या किसी ना किसी कला से लगाव होता है.
इस राशि का रंग होता है और यह पुरुष संज्ञक राशि मानी जाती है. यह राशि रात्रि में बली मानी जाती है. यह पृष्ठोदय राशि मानी गई है अर्थात पीछे का भाग पहले उठता है.
मिथुन राशि के व्यक्तियों के गुणो के बारे में जानने का प्रयास करते हैं. मिथुन राशि कालपुरुष की कुंडली में तीसरे भाव में पड़ती है. तीसरा भाव पराक्रम व साहस का होता है. इसलिए जब तीसरा भाव लग्न बनता है तब व्यक्ति को जीवन में पराक्रम अधिक करने पड़ जाते हैं. व्यक्ति अत्यधिक परिश्रमी होता है.
mithun lagan

इस राशि पर बुध का प्रभाव होने से आप बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति होते हैं. आपकी प्रतिभा दिन ब दिन निखरती ही है और सभी आपके काम से प्रभावित रहते हैं. इस राशि का वायु तत्व होने से आपका मस्तिष्क सदा चलायमान रहता है. आप नित नई योजनाओ को बनाने में व्यस्त रहते हैं. आपकी कल्पनाओ की दुनिया में भी खोये रह सकते हैं.
बुध को सभी ग्रहों में राजकुमार की उपाधि प्रदान की गई है. इसलिए बुध का प्रभाव होने से आप सदा स्वयं को जवाँ व ऊर्जावान मानेगें. आपको गीत, संगीत, नृत्य व कला में रुचि हो सकती है. आपको लेखन आदि कामों में भी दिलचस्पी हो सकती है.
आप हास्यरस प्रेमी व मनोविनोद में रुचि रखने वाले व्यक्ति होते हैं. आप अधिक समय तक गंभीर बने नही सकते हैं. आपको हंसी मजाक करना अच्छा लगता है. अपवाद - विवाद व तर्क्-वितर्क में अति कुशल व हाजिरजवाब व्यक्ति होते हैं. शारीरिक श्रम की बजाय आप प्रबंधन से संबंधित कामो में कुशल होते हैं.
आइए अब हम मिथुन लग्न के लिए शुभ ग्रहों का वर्गीकरण करते हैं. इस लग्न के लिए बुध लग्नेश व चतुर्थेश होकर शुभ हो जाता है. शुक्र पंचम का स्वामी होकर शुभ है क्योकि यह त्रिकोण स्थान है. वैसे तो शुक्र की दूसरी राशि वृष बारहवें भाव में पड़ती है फिर भी त्रिकोण की राशि को अधिक महत्व दिया गया है और फिर शुक्र की शुभता इसके बलाबल पर निर्भर करती है.
शनि की मूल त्रिकोण राशि कुंभ बली त्रिकोण स्थान नवम भाव में पड़ने से शनि भी शुभ होता है. बुध, शुक्र व शनि की शुभता जन्म कुंडली में इनकी स्थिति पर भी निर्भर करती है. यदि यह शुभ होकर बली हैं तब शुभ फलों में वृद्धि करेगें और अगर यह शुभ होकर निर्बल हैं तब यह अपनी शुभता में कमी भी कर सकते हैं.
मिथुन लग्न के लिए अशुभ ग्रहों के बारे में जानते हैं. इस लग्न के लिए चंद्रमा दूसरे भाव का स्वामी होकर तटस्थ बन जाता है क्योकि इसे मारक का दोष नहीं लगता है. सूर्य तृतीयेश होकर अशुभ होता है. तीसरे भाव की गणना अशुभ भावों के रुप में की जाती है.
मंगल छठे भाव और एकादश भाव का स्वामी होकर अशुभ है. गुरु सप्तमेश व दशमेश होकर भी शुभ नहीं है और यह मिथुन लग्न के लिए बाधकेश का काम करता है. इस ग्रह को केन्द्राधिपति दोष भी लगता है.
आपके लिए पन्ना, डायमंड व नीलम शुभ रत्न होते हैं. पन्ना बुध के लिए, डायमंड शुक्र के लिए और नीलम शनि के लिए पहना जाता है. यदि आप महंगे रत्न खरीदने में समर्थ नही है तब आप इन रत्नों के उपरत्न भी पहन सकते हैं.
यदि जन्म कुण्डली में बुध, शुक्र व शनि शुभ होकर कमजोर अवस्था में स्थित हैं तभी आप इनका रत्न पहनें. यदि किसी अशुभ ग्रह की दशा जन्म कुंडली में चल रही हो तब आपको उसके मंत्रों का जाप अवश्य करना चाहिए. जन्म कुंडली में जिस भी ग्रह की दशा हो उससे संबंधित मंत्र जाप के साथ आप व्रत भी रख सकते हैं.

 शुभमस्तु !!

Friday, April 15, 2016

वृष लग्न में शुभ अशुभ ग्रहों का उपाय......



ज्योतिष शास्त्र में मनुष्य के जीवन की समस्त घटनाओं को जान्ने के लिए हमारे ऋषि मिनियों ने तप और साधना कर जन्म कुंडली का साधन दिया उस जन्म कुंडली में नौ ग्रह, बारह राशियाँ तथा सत्ताईस नक्षत्रों का वर्णन किया इन सबके आपस में जो योग बनते है और दशाओं का ज्ञान से मनुष्य अपने भविष्य में शुभ अशुभ देखने की कौशिश करता है.

उसी अन्तरिक्ष विज्ञान के अनुसार हमारा अन्तरिक्ष 12 भागों में विभाजित कर प्रत्येक भाग को 30 डिग्री का मान कर उसमें नक्षतों का मान निश्चित किया तथा उन 12 भागों को अलग अलग नाम से प्रतिष्ठित किया गया,

आज हम दुसरे भाग के बारें में चर्चा करेंगे जिसे "वृष राशि" नाम से जानते है.वैदिक ज्योतिष में प्रत्येक राशि का अलग अलग महत्व है, वृष राशि का विस्तार 30 से 60 अंश का होता है, वृष राशि का स्वामी शुक्र ग्रह है, शुक्र ग्रह ज्योतिष शास्त्र अनुसार सौम्य ग्रह माना जाता है. ये स्त्री संज्ञक राशि है.

वृष राशि


वृष राशि का रंग सफेद है, इसीलिए इस राशि वाले सुंदर और गौरे रंग के होते है.इस का प्रतीक बैल बैल की तरह ही कुछ कुछ अड़ियल स्वभाव भी आ जाता है.ये स्थिर स्वभाव की राशि है इसी वजह से इस राशि वाले ठहराव वाले होते है, किसी भी कार्य में ज्यादा जल्दबाजी नही करते है.वृष राशि का "पृथ्वी"तत्व है,तथा पृष्ठोदय राशि है अर्थात आगे से उठने वाली राशि है.
अब आपके व्यक्तित्व के बारे में बात करते हैं. वृष लग्न होने से आप स्वभाव से शांत व गंभीर व्यक्ति होते हैं. आपको ज्यादा भाग दौड़ पसंद नहीं होती है. आप जल्दबाजी में कभी कोई निर्णय नहीं लेते हैं. दूरगामी परिणामो को जांचने के बाद ही आप किसी नतीजे पर पहुंचते हैं.
आपको अपने जीवन में बहुत जल्दी-जल्दी बदलाव पसंद नहीं होगा. इसलिए आप आसनी से स्थान परिवर्तन नहीं करते हैं. एक ही जगह पर बहुत समय तक बने रहते हैं. शुक्र का प्रभाव होने से आप सौन्दर्य प्रेमी होते हैं. आपको सुंदर और कलात्मक चीजें पसंद होती है. आप स्वभाव से रोमांटिक भी होते हैं.
वैसे तो आपको क्रोध कम आएगा लेकिन जब आएगा तब अत्यधिक आएगा, तब आपको शांत करना सरल नही होगा. आप स्वभाव से उदार हृदय होते हैं लेकिन आप एकांतप्रिय होगें. आपको ज्यादा भीड़ भाड़ कम ही पसंद होगी. आप जीवन में धन कमाने की इच्छा रखते है और धन एकत्रित करने में सफल भी होते हैं.
आइए अब आपके लिए शुभ ग्रहो का वर्ण्न कर दें. वृष राशि का स्वामी शुक्र ग्रह होता है और इसकी दूसरी राशि छठे भाव में पड़ती है. छठे भाव को अच्छा नहीं माना जाता है. बेशक छठा भाव शुभ नहीं होता है लेकिन दूसरी राशि छठे में पड़ने पर भी शुक्र को लग्नेश होने के कारण शुभ ही माना जाता है.
बुध इस लग्न के लिए धनेश व पंचमेश होने से आपको शुभ फल प्रदान करेगा, बशर्ते कि वह कुंडली में पीड़ित अवस्था मे ना हो. शनि इस लग्न के लिए योगकारी ग्रह होने से अत्यंत शुभ होता है. आपका लग्न वृष होने से शनि नवमेश व दशमेश होकर केन्द्र/त्रिकोण का स्वामी बन जाता है और शुभ फल प्रदान करता है. शनि आपकी जन्म कुण्डली में सबसे बली केन्द्र का स्वामी होता है और सबसे बली त्रिकोण के भी स्वामी बन जाते है.
आइए अब आपको अशुभ ग्रहों के बारे में बता दें. आपका वृष लग्न होने से चंद्रमा तृतीयेश होकर अशुभ बन जाता है. सूर्य चतुर्थेश होने से सम हो जाते है क्योकि चतुर्थ भाव आपके केन्द्र स्थान में पड़ता है और यह सम स्थान होता है.
आपकी कुंडली में मंगल सप्तमेश व द्वादशेश होने से अत्यंत अशुभ माना गया हैं. गुरु भी अष्टमेश व एकादशेश होने से अशुभ होता है. आठवाँ भाव बाधाओं व रुकावटो का होता है. यह त्रिक स्थान भी है.
अंत में हम आपको शुभ रत्नो के बारे में बताना चाहेगें. वृष लग्न होने से आपके लिए डायमंड, पन्ना व नीलम शुभ रत्न है. डायमंड शुक्र के लिए, पन्ना बुध के लिए और नीलम रत्न शनि के लिए होता है.
यदि आप महंगा रत्न नही खरीद सकते हैं तब आप इन रत्नों के उपरत्न पहन सकते हैं. यदि आपकी कुंडली में शुभ ग्रह कमजोर हैं तभी उनका रत्न पहने अन्यथा नही पहने. आपके लिए शनि और बुध के मंत्र जाप करना सदा शुभ रहेगा. शनि आपका भाग्येश है और बुध आपको सुख, समृद्धि व धन प्रदान करने वाला ग्रह है.

आपकी कुंडली में जिस ग्रह की महादशा जीवन में चलेगी उसके मंत्र जाप जरुर करें. आपकी कुंडली में चलने वाली महादशा के अनुकूल आपको फलों की प्राप्ति होगी.
जन्म कुंडली अनुसार जिस ग्रह की महादशा, अन्तर्दशा आदि चल रही हो उस ग्रहों का जाप और दान भी अवश्य करें.

शुभ ग्रह यदि अशुभ ग्रहों के नक्षत्र या भाव में स्थित हो तो सावधानी रखें. किसी विद्वान ज्योतिषी द्वारा परामर्श लेने के बाद ही उपाय का विचार करें.

शुभमस्तु !!